कठपुतली हो उसके हाथों की
फिर नाज़ -नख़रा कैसा ?
नाचो जैसे नाचाता है
वह आका़ है तुम्हारा ----
धागें हैं उसके हाथों में
कभी कत्थक, कभी कथकली
कभी ओड़िसी ,कभी नाट्यम
करवाएं हैं तुम से -----
कराएँ हैं नौं रस भी अभिनीत
जीवन के नाट्य मंच पर
हँसो या रोओं
विरोध करो या हो विनीत
नाचना तो होगा ही
धागे वो जो थामें हैं -----
डॉ. सुधा ओम ढींगरा
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