अब पाँच साल गुजर गये
आ गया फिर से चुनाव
अब शायद नेता फिर से बनेंगे
भिखारी भिखारी भिखारी ॥
अब देखो तलवे भी चाटेंगे
सच पैरों तले गिडगिडायेंगे
खुद को सेवक और कहे राजा
जनता जनता जनता ॥
नादान जनता चुनती इनको
बाद में देखे हाल ही उलटा
भिखारी बनते हैं राजा सब देखे
तमाशा तमाशा तमाशा ॥
पूछें ऐसा क्यों वक्त का नजारा
जनता के पास नहीं है जवाब
भिखारी नहीं बोलेंगे अब वे हैं
शासक शासक शासक ॥
अब वे इतने ईमानदार हैं यारों
सबकुछ निगलकर ऐसे खडे हैं
तोंद हाथी सा अब पाँच साल सोयेंगे
कुंभकर्ण कुंभकर्ण कुंभकर्ण ॥
अब फिर से वही रट लगायेंगे
गिडगिडायेंगे रोयेंगे हम सहेंगे
बेहतर है अब दिखा दे अंतिम
संसार संसार संसार ॥
डॉ० सुनील कुमार परीट
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