(सत्यघटना पर चित्र काल्पनीक है)
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कर्नाटकीय स्वतंत्रवीरों की देन अद्वितीय है। भारत को स्वतंत्र बनाने में यहाँ के अनेक वीर पुरुष, स्त्री, वृध्दों ने भी अंग्रेजों के विरोध में आंदोलन किया। इससे भी बढकर अनेक बाल-बच्चों ने भी इस स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, प्राणों की कुर्बानी दी। बात सन १९४२ अगस्त १५ की है, कर्नाटक के हुबली शहर में स्वाभाविक वातावरण था, सूरज खिल रहा था, पंछी चहचहा रहे थे, सामान्य जनता दयनीय स्थिति में भी अपने कामों में गुम थे। इसी बीच महात्मा गाँधीजी के 'भारत छोडो आंदोलन' में "वंदे मातरम" का नारा गूँज रहा था।
आसपास में पडोस के बच्चे खेलकूद में व्यस्त थे, पर वह मात्र जल्दि उठकर सफेद जुब्बा-पायजामा पहनकर अप्ने से बडे गुड्डे को तिरंगे ध्वज का रंग फासकर सोई हुई अपनी माँ के पास जाकर माँ से आशिर्वाद चाहा। सफेद कपडे पहने हाथ में तिरंगा ध्वज पकडे अपने बच्चे से माँ पूछती है-” कहाँ जा रहे हो बेटे?”
“ माँ मैं भारत छोडो आंदोलन में भाग लेने जा रहा हूँ।"
“ पर बेटे वहाँ तो सिर्फ बडे जाते हैं।"
“ माँ भारत माता की सेवा करने में छोटा-बडा कोई भी हो तो क्या?” इस तरह आत्मविश्वास से भराभोर बेटे की प्रखर मुख की ओर देखते हुए माँ ने अपने बेटे को आशिर्वाद देते हुए उसे जाने दिया। 'भारत छोडो आंदोलन' में भाग लेने निकले बालक की उम्र १३ साल है, नाम है नारायण महादेव धोनी, और वह हुबली के ल्यामिंग्टन स्कूल में पढता था।
अब वह भारत छोडॊ आंदोलन में शामिल हो गया, उसका उत्साह और देशभक्ति देखकर वहाँ के बडे-बडे स्वातंत्र्यप्रेमी भी दंग रह गये। आंदोलनकारों ने उस वीर बालक को अपनी मोर्चा का नेता मान लिया। वंदे मातरम, अंग्रेजों भारत छोडो जैसे नारे तीव्र रुप से गूँज रहे थे। सडक के आजूबाजू में खडे लोग उस वीर बालक का उत्साह देशभक्ति देखकर अपने आप पर घ्रूणा से लज्जित होकर वे भी न जाने कब आंदोलन में अपने आप को झॊंक दिया। कुछ ही क्षण में वहाँ एक बडा जनस्तोम तैयार हो गया।
इस तरह आगे कूच कर रहे उन आंदोलनकारों पर अंग्रेज पुलिसों ने एकदम से गोलियों की बारिश बरसाना शुरु किया, लोग अचल-विचल होकर इधर-उधर भागने लगे, लेकिन बालक नारायण मात्र " अंग्रेज भारत छोडकर चले जाओ" पुकारते हुए आगे बढता चला गया। वहीं कहीं से एक गोली उसकी छाती को चिरती हुई चली गई और नारायण खून में रंगीन होकर जमीन पर गिर पडा।
अस्पताल में अंतिम साँस गिनते हुए वीर बालक नारायण को देखने अनेक बडे-बडे अफसर दौडकर आये बालक से पूछा, “ तुम्हे क्या चाहिए?” “स्वराज्य" कहते हुए बालक की साँसे रुक गई। ऐसा वीर बालक नारायण भारत की स्वतंत्रता इतिहास में लीन हो गया, हमने एक खिलते फूल को गँवाया है। वह स्वराज्य की नींव का पत्थर बन गया। ऐसे महान वीर सुपुत्र को यह भारत माता कभी नहीं भूल सकती।
- डॊ. सुनील कुमार परीट
सरकारी माध्यमिक विद्यालय
लक्कुंडी - 591102
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(कर्नाटक) मो- 08867417505
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