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* दीपावलॊ सुख के साथ मनाओ ! *

 

- डाँ. सुनील कुमार परीट


deepawali



दीपावली दीपों का त्योहार है, प्रकाशमय पर्व है। अंधेरे को दूर करके चारों ओर प्रकाश फैलानेवाला त्योहार है। मन के अज्ञान को दूर करके ज्ञान से भर देनेवाला त्योहार है। बुराई पर भलाई की जीत, अंधकार पर प्रकाश का विजय मनाने वाला त्योहार है। दीपावली यानी कतार में दीपों को उजागर करके सभी ओर प्रकाशमय वातावरण निर्माण करना।

 

परन्तु आजकल इस दीपावली त्योहार का माहौल ही बदल गया है, क्योंकि आज इस त्योहार में प्रकाश से ज्यादा बम-पटाकों का धूम-धाम ही ज्यादा होता है। असल में पटाके फोडकर हम अपने ही नहीं दूसरों के सुखों का भी हनन करते हैं। सच मानों तो त्योहारों में सुख-समाधान होता है, पर इस तरह जोर-जोर से पटाके फोडकर सुखों को तिलांजलि दिया जाता है।

 

दीपावली धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है, कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली त्योहार मनाया जाता है। कहा जाता है कि, कार्तिक अमावस्या के श्रीरामचंद्र जी ने रावण का वध करके अयोध्या लौट आये थे। तो अयोध्या की जनता ने हाथ में दीप लेकर रीरामचंद्र जी का स्वागत किया था। और इसी दिन लक्ष्मी देवी की पूजा भी की जाती है। घर आसपास की स्वच्छता और प्रकाश से प्रसन्न होकर लक्ष्मी देवी आसीर्वाद देती है। और कुछ लोगों का कहना है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने भूमंडल पर अत्याचार करनेवाले नरकासूर का वध किया था। लगभग इस दिन बुराई पर भलाई ने जीत हासिल की थी।


दरअसल दीपावली त्योहार की सार्थकता बडे धूम-धाम से मनाने में नहीं, बल्कि एक-दूसरे को खुशियाँ बाँटने में है। निरर्थक आडम्बर से बचकर इस दिन हमारे मन के अज्ञान को दूर करके गरीबों की, भूखों की सेवा करके इस त्योहार को सार्थक बनाये। और इसी में सच्चा सुख है, समाधान है।

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