मुझे जुदा होना है
अपनों से भी
और गैरों से भी
मुझे बनना नहीं अपनों सा
मुझे बनना नहीं गैरों सा
मुझे बनना है
सबसे जुदा
इसलिए आज मुझे
जुदा होना है
नामुमकिन को मुमकिन बनाके
क्षितिज को हासिल करके
सागर से गहराई तक
आसमान से ऊँचाई तक
किसी ने पाया न किसी ने खोया
सबसे अनूठा हो मेरा प्यार
न हो घृणा न ईर्ष्या
आज न कल गिर जाऊँ
उसी बीच हो मेरा
जो है सबसे जुदा॥
- डॊं. सुनील कुमार परीट
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