Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कल कल न हो

 

आज हमें
जी भर जीना है
कौन जाने कल
शायद कल न हो
सूरज उगे
पर हम न जगे
कल कल न हो
रात हो
नींद हो
पर हमारी आँख न खुली
तो कल कल न हो
घरबार उठे
आँगन सजे
सब हँसे-गाये
हम सोते रहे
तो कल कल न हो
कली खिल जाये
पंछी चहचहाये
कोयल गाये मधुर
हमारे कान न सुने
तो कल कल न हो ॥

 

आज जी भर जीना है
सूरज सा चमकना है
चाँद-तारों सा दमकना है
फूल कलियों सा खिलना है
पंछी कोयल सा गाना है
आज ही सबकुछ करना है
शायद
कल कल न हो ॥

 


- श्री सुनील कुमार परीट

 

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