क्या किसने कभी
सुना है वह
पंछी का मधुर गान
देखा है वह
मोर का नाचना
क्या करे
सबकुछ इस युग में
उलट-पलट गया
जागते सोते हैं
सोते जागते हैं।
यही आदत सी पड गयी
बन्द आँखें बन्द कान
न कुछ देखते सुनते
रहते व्यस्त अपने आप
समाज से विमुक्त
ऐसा कि,
संसार से मुक्त ॥
- श्री सुनील कुमार परीट
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