लेखनी में स्याही भरके
खाली एक पृष्ठ लिए
बैठ जाता हूँ लिखने
कविता लिखता हूँ
दिल से कहता हूँ
शब्द-शब्द जोडता हूँ।
शब्दों का रुप धारण कर
क्या भाव उमढ पडे बाहर
शब्दों का रुप ही है
भीतर का कोलाहल
भावना बहती कहती
जैसे मस्त नदी बहती।
रग-रग में लहू बहता
रुक जाएँ साँसे आज
इसलिए लिखता रहता हूँ
आज
कल के लिए...॥
- श्री सुनील कुमार परीट
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