’मेरी देश की धरती’
देखे सोना उगले
पर देश का सोना
ये सारे खाग निगले॥
’मेरे देश की धरती’
हरा भरा घास उपजे
जानवरों की तरह
ये सारे बेईमान चपटे॥
’मेरे देश की धरती’
धर्म संस्कृति की खान
स्वार्थपरता में लिपटे नेता
लेते हैं उसकी जान॥
’मेरे देश की धरती’
खिले फूल खुशबू के
बकासूर सा नेता देखो
पीता है खून चूस के॥
’मेरे देश की धरती’
जन्में थे महान विभूति
अब टपक गये हैं कैसे नेता
दीन बनी देश की स्थिति॥
’मेरे देश की धरती’
संसार में आदर्श संस्कृति
जनता से दूर पसार है नेता
भूत से भी भयंकर विकृति॥
’मेरे देश की धरती’
सुंदर हरियाली खेती
नेता ही दलाल बनकर
छीन रहे हैं गरीब की रोटी॥
डॉ० सुनील कुमार परीट
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