Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शब्द मेरे समय न मेरा

 

स्वयं रुचि से नहीं
कभी लिखता कविता
स्वयं भी नहीं जानता
क्यों कैसे विवश होता हूँ
अपने आप बैठ जाता हूँ
लिखने कविता....।

 

कहाँ से आरंभ
कहाँ पे खत्म
कुछ न निर्धारित
लिखते...लिखते...
आगे बढते...बढते...
कहाँ रुक जाऊँ
शायद
मेरे शब्द ही नहीं
शायद
वह समय ही
निर्धारित करें अब
क्यों....?
शायद
शब्द मेरे पर
समय न मेरा॥

 

- श्री सुनील कुमार परीट

 

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