स्वयं रुचि से नहीं
कभी लिखता कविता
स्वयं भी नहीं जानता
क्यों कैसे विवश होता हूँ
अपने आप बैठ जाता हूँ
लिखने कविता....।
कहाँ से आरंभ
कहाँ पे खत्म
कुछ न निर्धारित
लिखते...लिखते...
आगे बढते...बढते...
कहाँ रुक जाऊँ
शायद
मेरे शब्द ही नहीं
शायद
वह समय ही
निर्धारित करें अब
क्यों....?
शायद
शब्द मेरे पर
समय न मेरा॥
- श्री सुनील कुमार परीट
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY