- डाँ. सुनील कुमार परीट
ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत कन्नड के श्रेष्ठ साहित्यकार श्री शिवराम कारन्त जी अपने 'यक्षगान बयलाट' शोधप्रबन्ध में कहते हैं- “ यक्षगान का सर्वप्रथम उल्लेख सार्णदेव के 'संगीत रत्नाकर' में लगभग १२१० ई. में 'जक्क' नाम से जाना जाता था, आगे 'यक्कलगान' के नाम से बदल गया। गंदर्वगान तो अब नाश हो गया है, पध्दति के अनुसार गान और स्वतंत्र लोकसंगीत शैली से नृत्य का सृजन हुआ है।" १५००ई तक व्यवस्थित यक्षगान का रुप सामने उभर आ गया था इसे अनेक विद्वान मानते भी हैं। मूलत: यक्षगान दक्षिण भारत में ही अत्यंत प्रसिध्द एवं प्रचलित है। यक्षगान कला संस्कृति को कन्नड, तामिल और तेलगु में पाया जाता है।
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