Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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परदे की ओट से झाँकती आँखें

 

pardeki

 

रह-रहकर परदे की ओट से कुछ- कुछ झाँकती आँखें,
मन-ही-मन कुछ कहती, कुछ-कुछ छिपाती-सी आँखें.
मुदित मन से खिली-खिली कुछ मुसकराती-सी आँखें,
दबी-दबी-सी सकुचाती, कुछ-कुछ हिचकिचाती-सी आँखे.
महुए की ओट से झाँकती हुई कुछ-कुछ शर्माती-सी आँखें,
सिर पर गगरी रखे इठलाती-सी कुछ बलखाती-सी आँखें.
साड़ी के पल्लू को मुँह में दबाए कुछ सकुचाती-सी आँखें,
बिना बात देख-देख खुली-खुली खिलखिलाती-सी आँखें.
सोलह श्रृंगार से सजी-धजी कुछ-कुछ इठलाती-सी आँखें ,
नेह के आमंत्रण से भरी-भरी कुछ-कुछ लजाती-सी आँखें.
प्रणय-अवमानना से उपेक्षित क्रोध से तमतमाई आँखें ,
बार-बार देख मुझे हँसती-हँसाती-सी मनुहारी-सी आँखें .

 

 


---डॉ. सुरेन्द्र यादव, इंदौर

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