यह सर्दी की सुबह और सुबह वाली चाय
मीठी-मीठी सी तेज मसालों वाली चाय
प्रियतमा की अनुरागी मनुहार वाली चाय
गुलाब की कली-सी खुशबू फैलाती-सी चाय
'उनकी' मुसकान से तपती-उफनती सी चाय
व्यतीत स्मृतियों में अकेले पी जाने वाली चाय
ओस-भीगी सुबह में जबरन थमा दी गयी चाय
सचमुच में याद आती है बहुत-बहुत 'वह' चाय
ओढ़ी रजाई में अलसायी कसमसाती-सी चाय
उनके हाथों के स्पर्श से मीठी होती-सी चाय
'उनके' साँसों की छुअन से छलछलाती-सी चाय
पहाड़ी नदी-सी कलकलाती बलखाती-सी चाय
भुलाए न भूलती, बहुत याद आती है अब
'वह' सर्दी की सुबह और सुबह वाली चाय.....
--डॉ. सुरेन्द्र यादव
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