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सीखने की कला

 

सीखने की कला 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

सरकारी पाठ्यपुस्तक लेखक, तेलंगाना सरकार

चरवाणीः 73 8657 8657, Email: jaijaihindi@gmail.com

(https://google-info.in/1132142/1/डॉ-सुरेश-कुमार-मिश्रा-उरतृप्त.html)


देश की आर्थिक व्यवस्था और मेरे घर की अलमारी दोनों में एक समानता है। दोनों अव्यवस्थित हैं। अंतर केवल इतना है कि अर्थ-व्यवस्था की जाँच प्रतिवर्ष होती है जबकि मेरी अलमारी कई वर्षों से जैसी की तैसी पड़ी है। जब भी कुछ नए कपड़े लाता हूँ उसके भीतर रख देता हूँ। यदि पहन लिया तो उसके भीतर ठूस देता हूँ। कपड़ों पर पड़े सिलवटों से उसके ठूसने की गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है। मैं वैज्ञानिक तो नहीं लेकिन वैज्ञानिक से कम भी नहीं हूँ। जिस तरह वैज्ञानिक हड्डियों की कार्बन टेस्टिंग से मृत व्यक्ति की आयु बता देते हैं, ठीक उसी तरह से मैं भी कपड़ों पर पड़े सिलवटों से अलमारी में रखने की तारीख बता देता हूँ। अलमारी भी बड़ी कमाल की चीज़ है। उसके खोलते ही कपड़े भर-भराकर क़दमों में ऐसे गिर जाते हैं मानो वह हमारे चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहते हैं। उसे जब-जब टटोलोगे तब-तब आपको आश्चर्यचकित करेगी। कभी मीठी यादों का ठिकाना है तो कभी रुलाने का बहाना। कभी पुरातत्वविद की भाँति खोई हुई चीज़ को ढूँढ़ निकालने का आशियाना। मानो यह अलमारी न हुई हमारे रहस्यों का पिटारा हो गया। शरीर के लिए हृदय और घर के लिए अलमारी दोनों खास होते हैं। जिस दिन दोनों बगावत पर उतर आयें तो न जाने कितनी जिंदगियाँ बर्बाद हो सकती हैं। 

एक दिन गजब हुआ। कई वर्षों तक जिस कमीज़ को मैं गुमशुदा मान चुका था, वह अलमारी के एक कोने में पड़ी हुई मिली। मेरी खुशी का ठिकाना न था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब पहली बार मैंने उस कमीज को पहना था उस दिन एक बहुत बड़ी घटना घटी थी। कॉलेज जाने के लिए बस में सफर करना पड़ता था। सो, उस दिन वही कमीज़ पहनकर सफर कर रहा था। बस में तिल रखने भर की भी जगह नहीं थी। जैसे-तैसे सफर कर रहा था। अचानक जोर से चालक ने ब्रेक लगाया। हम यात्री सब एक-दूसरे पर गिरे। गिरना भी सौभाग्य और दुर्भाग्य की बात होती है। मैं जिस पर गिरा उसके गले की माला से मेरे कमीज का बटन टूट गया। बटन टूटा तो टूटा लेकिन उसने एक सुंदर लड़की से परिचय करा दिया। मुझे नहीं पता कि टूटे बटन का किस्सा आगे चलकर क्या गुल खिलाएगा।

फिर हर दिन उस सुंदरी से मेरी भेंट होने लगी। आँखों ही आँखों मे दिल की बातें होने लगीं। पाँच साल तक किस्सा ऐसा ही चलता रहा। अब बातें आँखों से होती हुई मुँह से और मुँह से होती हुई घर तक पहुँच गईं। दोनों घरों के बड़े-बूढ़ों ने रिश्ते की रजामंदी पर मुहर लगा दी। विवाह के पावन सूत्र में बंध गए। अब हम दो बदन एक जान की तरह जीने लगे। जिंदगी में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। एक दिन अचानक अलमारी टटोलते समय वही कमीज़ मिल गयी जिसका जिक्र मैं अभी तक कर रहा था। पत्नी को कमीज दिखाने पर उसकी भी पुरानी यादें तरोताजा हो आईं। 

मैं उस कमीज़ को फिर से पहनना चाहता था। मीठी-मीठी पुरानी यादों को फिर से गले लगाना चाहता था। जिंदगी के बीते पलों से अपने कुछ पल चुराना चाहता था। मैं कमीज लेकर दर्जी के पास गया। कमीज का टूटा बटन बड़ा दुर्लभ था। उसने मुझे तीन दिन बाद आने के लिए कहा। तीन दिन की वह बेसब्री मेरे लिए परीक्षा की घड़ी थी। जैसे किसी ने वार्षिक परीक्षा लिखी हो और परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा हो। तीन दिन बाद गया। बटन न मिलने के कारण दर्जी ने कमीज लौटा दी। परीक्षा में फेल किसी विद्यार्थी की तरह मुँह लटकाए निराश होकर घर लौट रहा था। रास्ते में मेरी नज़र एक अधनंगे बूढ़े पर पड़ी। वह निस्सहाय चिलमिलाती धूप से परेशान था। मैं उसके पास गया। उसकी नज़र मेरी थैली पर पड़ी। मैंने थैली में से कमीज़ निकालकर दिखायी। उसकी आँखें चमक उठी थी। मानो उसे इसी कमीज़ की जरूरत थी। मैं कुछ देर के लिए असमंजस में पड़ गया। फिर कुछ सोचकर वह कमीज़ उसे दे दी। बूढ़ा दोनों हाथ उठाकर मुझे आशीर्वाद देने लगा। 

मैं जब घर लौटा तब पत्नी को सारा किस्सा सुनाया। इस पर पत्नी ने कहा कि वह कमीज़ हमसे दूर होकर भी हमारे करीब हो गई है। बटन टूटना तो एक बहाना था। यदि आज वह बटन न टूटा होता तो न हम मिलते और न ही वह बूढ़ा खुश हो पाता। कभी-कभी कुछ चीज़ें टूटकर जुड़ना सिखा देती हैं। खुशी से हँसना सिखा देती हैं। टूटते सभी हैं, लेकिन कुछ अच्छा करने के लिए टूटने का सुख सभी के भाग्य में नहीं होता। 

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