Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फिर वही लवरेज़ मंजर तैरता देखा गया

 

फिर वही लवरेज़ मंजर तैरता देखा गया
उनकी आंखों में समन्दर तैरता देखा गया
कतरा कतरा हो के शबनम जब गिरी रुसखार पर
उनका आंसू मेरे अन्दर तैरता देखा गया

उनके चेहरे की जया याकूत जैसी हो गई,
कर्ब का उन्मान अक्सर तैरता देखा गया
दोस्ती रिश्ते मोहब्बत थे बहारों के निशां
उनमें ज्यादा ही तगैयुर तैरता देखा गया
किस सलीके से करी है बन्द अधरों के जुबां
जिन्दगी का हर्फे अजहर तैरता देखा गया

रात ढलते ही किरण की रअनाई खो गई
शहर में इक खौफ़ दर दर तैरता देखा गया
कश्मकश की सुबह से होते भले कुछ गम ‘सुशील’
मुब्तदी का ख्वाब अक्सर तैरता देखा गया

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