कथन
तुमने कहा थी कि नयनों से चले आना तुम
नयनों से आया तो पलकों में बन्द हो गया
अंतर छुआ तो चित चातक सा प्यासा हुआ प्राणो को छुआ तो प्राणो की सुगन्ध हो गया
बाइबिल कुरान की आयतों को छू लिया तो रामचरितमानस का एक छ्न्द हो गया अधरों पर आया तो थोडा सा थरथराया और गुनगुनाया तो मैं गुरुग्रंथ हो गया
स्पर्श तुमने छुआ तो मुझको जाने क्या हुआ है हुए प्रज्वलित दीप अनेक रोम रोम में महासिन्धु रोशनी के झिलमिलाने लगे हैं चाँद्नी के पुष्प खिले अंतस के व्योम में
तन में प्रवाहित हुई गंगा की पवित्र धारा स्वांति नेह झलका नैनों के दृष्टिकोण में पलकों के पोरों पर, अधरों के कोरों पर
आमंत्रण मुखर हो गया स्वत: मौन में
दृष्टि
तुमने देखा तो मानो सुधियों के फूल खिले
इन्द्रधनुषी रंग गई, धूप की चुनरिया चन्दन सा मन हुआ, चाँदनी बदन हुआ
रोशनी मे नहा गई जलभरी बदरिया
नयनों ने सयनों से बोले अनबोले बोल
कानों पर रख के कचनार की भुजरिया नेह के बुलउआ मेले गले मिले बिना मिले चुपचुप बातें कर गये बीच बजरिया
सुगन्ध
तुमने सुगन्ध मली चन्दन की गन्धवाली
उबटन मलके कचनार का सन्दल का
ऊषा का वरण मला चन्दा का तरल मला स्वस्तिमाल अंगराग मला गंगाजल का केसरी बदन ने तो नदिया का जल छुआ इक पल में हो गया गुलाबी रंग जल का
फूलों जैसी रंगवाली हुई है तुम्हारी देह
पैंजनी जो छ्नकी गुलाबी रंग छ्लका
श्रवण
तुमने सुना सही काले अक्षर कागज़ पे गोरे गोरे जीवन छायाचित्र खींच जाते हैं नेह के सम्बन्ध ऐसा स्नेह पैदा करते हैं चाँदनी उगाते और चकोर रीझ जाते हैं
लिख दिया रख दिया जैसे दिया आरंती का कागज़ संग संग उड जाना सीख जाते हैं बांहों मे झुलाते कही,कान्धे पे उठाते कभी बडी बडी आँखोंवाले नयना रीझ जाते हैं
श्रवण
हमने सुना तो फिर तुमने भी सुना होगा
भारत की जो भारती है छाया पुरुषार्थ के जानकी श्रीराम जी की राधिका कन्हैया जी की पार्वती है शंकर जी की पांचाली है पार्थ की कस्तूरबा है गान्धी जी की ललिता बहादुर की यशोदा है नन्द जी की यशोधरा सिध्दार्थ के
रामायण तुलसी की, मधुशाला बच्चन के पयोधर कृतिका महादेवी की प्रसाद की
डॉ.सुशील गुरू
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