साजिश से सहमी हिंदी
डॉ सुशील शर्मा
बरसायें स्वागत पखुंड़ियाँ
अरी ओ हिन्दी
तुम आओ
आज दिवस है तुम्हारा
सुना है वेदना के अख़बार में
तुम छपती हो
बाजार के फुटपाथ पर
पुराना गोदान
एक तरफ से दीमक ने खाया
दस रूपये में मैनें ख़रीदा है।
तुम्हारे रस छंद अलंकार
इस निर्मम बाजार में
पड़े है उस कचरे के ढेर में
वही कचरे की गाड़ी का लाउडस्पीकर
चिल्ला रहा है
गाड़ीवाला आया घर से कचरा निकाल।
चुटकी भर धूप
डूबते सूरज की शेष बची
भविष्य के विराट में तुम
खोजती अपना अस्तित्व
जिस सभ्यता के हाथों में अंग्रेजी का मापन है।
उन्हीं के कंधों पर
तुम्हारी जिम्मेवारी है है.
हिंदी दिवस पर भाषण
लिए जाते हुए जो अपने बच्चे से कहते हैं
आर यू प्रेपेयर योर स्पीच फॉर हिंदी दिवस ?
आज उन्हीं की जुबान पर
हिंदी की दशा और दिशा पर अफ़सोस है।
सुना है वो हिंदी के बारे में बहुत चिंतित हैं
वह सभी लोग
जिनके घर पर टेनिसन इलियट वर्ड्सवर्थ
की किताबें सजी हैं
अंग्रेजी पत्रिकाओं और न्यूज़ पेपर्स से
जिनकी सुबह शुरू होती है
वो सभी लोगों पर
हिंदी दिवस समारोह की तैयारी की जिम्मेदारी है।
मानवता की बोनसाई बनते लोग आज हिंदी के प्रति
संवेदना की बोनसाई उगा रहे हैं
सुना है हिंदी दिवस के बहाने
कुछ अभिजात्य लोग
अंग्रेजी में बतियाते
हिंदी दिवस मना रहे हैं।
और दूर
इस साजिश से सहमी हिंदी तुतलाती है
शब्दकोष में दर्ज अपनी परिभाषा
उसको साजिश सी लगती है
किसी शीर्षक की डोरी पर टंगे शब्द
उकता कर गिर जाते हैं।
सदियों से जो अनवरत बहती हिंदी
उदास शब्दों मेंं कुछ कहती हैं ?
अरे सुनो अब हिंदी का कातिल
आज मसीहा बनने निकल पड़ा है।
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