आसमान के आरपार
मेरा अरमान
यों पंख पसारें !
पंख पंखों से
सटकर सोने की
मेरी ललक !
मिलन की बंदिशें;
मृषा का अफसोस भी
मुझे भाता नहीं !
क्या तुम......
मेरे सिराओं के
खून से घुलकर
सतरंग रचती
इन्द्रधनुष बनोगी ?
डा० टी० पी० शाजू
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आसमान के आरपार
मेरा अरमान
यों पंख पसारें !
पंख पंखों से
सटकर सोने की
मेरी ललक !
मिलन की बंदिशें;
मृषा का अफसोस भी
मुझे भाता नहीं !
क्या तुम......
मेरे सिराओं के
खून से घुलकर
सतरंग रचती
इन्द्रधनुष बनोगी ?
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