Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बादल

 

हाँ और ना के बीच
निशब्द, मेरी करुण बादल !
मेरे उर को चीरकर
बरस रही हो तुम
सदियों से.....
पीछे भडकता
मृग मरीचिका के,
उल्टी दिशा में
निर्मम प्रयाण...
मेरी लालच को
बुलंद नहीं किया
उमड रही तेरी उफन
आँसुओं की वर्षा में
भीग गई कई बार
बेवफाई से बोझिल दिल
आधी रात में
तेरी रुदन अंतहीन,
मर्मर से वापस
बुलाया नहीं...
छिपाया मर्मव्यथा को,
इंसाफ नहीं बेकसूर
हाँ और ना के बीच
निशब्द, मेरी करुण बादल !
मेरे उर को चीरकर
बरस रही हो तुम
सदियों से.....

 

 

डा० टी० पी० शाजू

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