Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भ्रमर

 

कली मैं खिली,
भ्रमर आया वह
पवन में झकझोर !
थर्रा उठी मैं...
पहली बार यह
गुंजन सुना,
अनसुनी बातों की !
नरम-नरम हो गया
कंपित गात मेरा,
कसक दिया उसने...
औ ! क्या हाल बनाया;
मधु पिया वो
मस्त मदहोश !
मेरी ही छाती में
मुॅंह छिपाया...
थपकी दिया तो
अटक रहा मुझसे,
अपनी ही क्रोड में
रहा वह मेरा...
कली मैं खिली,
फिर उड गया
वो कहीं........

 

 

डा० टी० पी० शाजू

 

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