Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी चाहत

 

सौदा होती हैं
हार-जीत की
हर रोज़....
हर शाम को विदाई
फिर सुबह मिलन
यों मेरे करीब रहती
सपने बुनती
आकाँक्षाए बाँटती
सांसों की गर्मी से
मुझे सताती
शरारत करती
आखें लडाती
मेरी चाहत
अब तक तुम
मेरे पास थी.....
................

 

 

 

डा० टी० पी० शाजू

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