Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आओ! हम एक दूजे से लगकर बैठें

 

आओ! हम एक दूजे से लगकर बैठें

जिंदगी की ढ़हती दीवार को पकड़कर बैठें


दम लिया था कयामत ने कभी जहाँ

उस वक्ते-सफ़र को संवार कर देखें


रिजवा1 से हमारी लड़ाई नहीं, क्यों न हम

उससे खुल्द2 के घर की बात कर देखें


जीस्त3 की कराह से फ़जा4 बेकरार है, आँख

जागती है क्यों, आदमी की मौत पर, पूछकर देखें


जो वो न चाहे, कौन उठा सकता हमें

चलो उसके दर पर मुश्तमिल5 होकर बैठें


1.स्वर्गाध्यक्ष 2. स्वर्ग 3. जिंदगी 4. हवा

5.मिलकर





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