Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आरजू थी कि आज का जाम

 

आरजू   थी   कि   आज  का  जाम , हम  तुम्हारे  नाम  करें
तेरे कैद- ए-कफ़स1 में रहकर , रात आराम करें

मेरे इश्क को तुम्हारे दामन का कभी न सहारा मिला
हम कैसे अपने बज़्म2में,तुम्हारे नाम का अहतमाम3करें

रहता नहीं अपना मुकद्दर भी अपने साथ कभी हम
अपना नाम तुम्हारे नाम कर क्यों तुमको बदनाम करें

दुनिया में नकदे-इबादत4 कर लोग जन्नत को
खरीदने लगे , हमारे पास माल कहाँ, जो दाम करें

रश्मे–तहरीर5 कब की मिट चुकी हम दोनों के बीच
अब लिखकर खत , हम क्यों तुमको बदनाम करें


1प्रेम-कारागार 2.मजलिस 3.प्रबंध 4.पूजा धन
5.लिखने की प्रथा


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