Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आशा का परिहास होगा

 


आशा का परिहास होगा


जिसकीसाँस -  साँसपर

दुख प्रभंजनलोटता  हो

अंधकार कालिमाका

अवसाद लिये संग सोता हो

तट  तरु कीछाया फ़िर से

उसकेपाँवचूमने आयेगी

रुधिरवेग से  कंपित होकर

अश्रु नयन,फ़िर से कवलित होवेगा

सकल कामनास्रोतहीनहै

मनुज  के आगे कालदीन  है

ऐसान हुआ,   नहोवेगा

यह आशा का  परिहास होगा

स्मृति का उपहास होगा

यादों  के  सन्नाटे में, चपला

कब विश्राम की,    जो

स्वप्न  मिलन  की बात करेगा

शब्दों  का शिखर कब टिका है

जो  गलित  कर  अपने हृदय,

शिला को प्रेरणा सरित बनावेगा


नित  स्वप्न  की  आढ़ लेकर

मरने  वाले  मनुज को,केवल

जलने  का अधिकार मिला है

अपने अंदर के जीवित ज्वलित

अंगार को समेटे रहो, एक दिन

जब  लगेगी  प्राण की  ठंढ़क

तब  अपने आप रेंगनेवाला

यह अनल, शांत हो जायेगा




थर- थर  कर कांपरहाभूधर

टूट - टूट  कर  गिररहा उपल

आँखें बंद कर क्यों  चिल्लाते हो

कारागारसे  बाहर जाने का द्वार 

पता नहीं , तोड़ो , तोड़ो  कर  क्यों

आघातों से,फ़िर-फ़िर आघात खाते हो

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