Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऐ हुजूमे-गम, जरा संभलने दे, इस बीमार को

 

ऐ हुजूमे-गम, जरा संभलने दे, इस बीमार को

यूँ नहीं कत्ल करते कोई, अपने वफ़ादार को


क्या गजब हो जाता जो रात, तू कहीं और ठहर जाता

पैगाम आया है यार के, दीदार को


मय और माशूका से कब इनकार रहा मुझे

मैं, आशिक-जार1हूँ, मत रोक रिन्दे कदहरवार2 को


माना कि हममें करवटें फ़ेरने की ताकत नहीं

मगर कैसे जाने दूँ हाथ से, ताला-ए-बेदार3 को


ऐसे तू तो रहता है बे-यार के पहलू में, तू क्या जाने

साँचे में ढ़ले जाने के बाद शोले के करार को


1.दुखी प्रेमी 2. पुराने शराबी 3.जागता हुआ भाग्य




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