Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपने इश्क का इम्तिहां चाहता हूँ

 


अपने इश्क का इम्तिहां चाहता हूँ

दरम्यां एक जहाँ चाहता हूँ


है आशिकी में रश्म अलग बैठने का

दिले - नाज़ का कहकशां चाहता हूँ


जमीं से फ़लक तक है इन्तजार आलम

वादे की रात है एक, मेहरबां चाहता हूँ


नामो - नमूद कर होने दो मुझको

मैं हस्ती – ए - बेनिशां चाहता हूँ


छोड़ रंजो – महन की बातें, डूब रहीं

अखड़ियों में एक आसमां चाहता हूँ



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