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Dr. Srimati Tara Singh
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बुढ़ापा

 

बुढ़ापा

Dr. Mrs Tara Singh


बुढ़ापा, अर्थात जिंदगी की शाम, ढ़लता सूरज यानि मनुष्य जीवन की परिपूर्णता का एक चरण , जो बचपन और जवानी के बाद आता है । जब शरीर में ऊर्जा कम होने लगती है, और धीरे-धीरे एक समय ऐसा भी आता है, जब शरीर पूरी तरह शक्तिहीन हो जाता है । तब उन्हें अपने बच्चों की आवश्यकता होती है, और उनसे यह आशा रहती है, कि जिन बच्चों को पाल-पोषकर बड़ा किया, वे उनके साथ अच्छा व्यवहार करें । प्राय: देखा जाता है, कि वृद्धावस्था में अधिकतर लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं । यही नहीं ,उनके शरीर के कुछ अंग काम करना भी बंद कर देते हैं, तब एक शिशु की तरह लाचार-परेशान , भूखा-प्यासा एक जगह तब तक पड़ा रहता है, जब तक कि उन्हें कोई हाथ पकड़कर, उठाकर उन्हें खाना न खिला दे ,एक जगह से दूसरी जगह न ले जाये ,लेकिन दुख की बात है कि आज कुछ संतान अनुभव और शिष्टाचार के अभाव में, घमंड से चूर , माँ-बाप के समक्ष आकर इतरा-इतरा कर चलते हैं, मानो वे कभी बूढ़े होंगे ही नहीं, जवानी उनके सदा साथ रहने वाली है, ऐसा करना ईश्वर की नियमता को नकारना है और जो ऐसा करते हैं, वे पापी हैं, अत्याचारी हैं, और साथ ही व्यभिचारी भी ।

पवित्र कुरान के 23 वीं एवं 24 वीं आयत में खुदा कहता है ---- बूढ़े माता-पिता की सेवा, खुदा की इबादत है, उनका लेशमात्र भी अपमान, खुदा का अपमान है । इसलिए न उन पर चीखो, न चिल्लाओ, न ही अपमान सूचक शब्दों का व्यवहार करो । उनके साथ प्रेम और नम्रता ही सच्ची पूजा है । इस्लामी इतिहास में तो यहाँ तक लिखा है कि माँ-बाप के आगे-आगे नहीं चलना चाहिये ; यह भी एक प्रकार का अपमान है । इस्लामी संस्कृति में वृद्धों को विशेष स्थान प्राप्त है , पूरे परिवार के लोग वृद्धों का सम्मान करते हैं । उनकी देख-रेख, सेवा-सुष्रुषा जी-जान से करते हैं । किसी भी बड़े अनुष्ठान या घरेलु कार्यों में उनसे सलाह-विमर्श करते हैं । आपस की बड़ी लड़ाई –झगड़े उनके समझाने से समाप्त हो जाते हैं । लोग मिल-जुलकर रहने का उनका फ़ैसला मानते हैं ।

पैगम्बर इस्लाम फ़रमाते हैं----- वृद्ध अपने परिवार के बीच टीक उसी तरहहैं, जैसे पैगम्बर अपने अनुयाइयों व कौम के मध्य रहते हैं , और अगर वृद्ध एकता एवं समरसता के चिराग हैं तो उन्हें जलाये रखने के लिए हमें उनकी रक्षा ही नहीं ,हमें अपना सेवा-धर्म पालनकर उन्हें खुश रखना चाहिये । ऐसा कोई भी कृत्य नहीं करना चाहिये ,जिससे उनके मन को चोट पहुँचे, और आत्मा रोये, उनकी नसीहतों और अनुभवों की उपेक्षा न कर , सम्मान करना चाहिये । हजरत अली अलैहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं ----- विद्वान का उनके ग्यान के कारण और बड़ों का उनकी आयु के कारण सम्मान होना चाहिये । अगर जवान ,बूढ़ों का मूल्य न समझें, और उनका आदर –सम्मान न करे, तो मानवीय व भावनात्मक सम्बंध समाप्त हो जायेंगे । साथ ही जवान भी बूढ़ों के लम्बे अनुभवों को जानने व समझने से वंचित रह जायेंगे , और तो और यह, संस्कृति भी भावी पीढ़ी में हस्तान्तरित नहीं हो सकेगी । एक संस्कृति को भावी पीढ़ी तक पहुँचाने का बेहतरीन तरीका माता-पिता और शिक्षक व प्रशिक्षक के साथ का व्यवहार है , बच्चे अपने बड़ों को, घर के बुजुर्ग के साथ जैसा व्यवहार करते देखेंगे, बड़े होकर वे भी वैसा ही करेंगे ; अर्थात बच्चे जो देखते हैं, उसे ही अपना आदर्श बना लेते हैं ।

अत: जिस व्यक्ति को यह अपेक्षा हो कि उसके बच्चे शिष्टाचार सीखें, तो सबसे पहले उसे खुद को शिष्ट करना होगा, तभी परिवार बँटता नहीं है, एक बनकर रहता है । क्या बुढ़ापा एक अभिशाप है ? मैं तो कहूँगी, बुढ़ापा अभिशाप नहीं, कुदरत का एक करिश्मा है, जो ऊपरवाले की नियमावली के अंतर्गत आता है जो बचपन और जवानी के जाने के बाद आता है, जिसमें मजबूरी ,तिरस्कार और दुत्कार भरा होता है । बुढ़ापे को कई असुविधाओं के साथ-साथ कई कष्ट भी सहने पड़ते हैं; 


इनमें कुछ आसमानी होते हैं, तो कुछ इन्सानी । जिंदगी की ढलती शाम में थकती काया और कम होती क्षमताओं के बीच हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का सबसे बड़ा रोग ,असुरक्षा के अलावा, अकेलेपन की भावना है । बुजुर्गों के “ओल्ड एज होम” में भेज देने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से वे बीमार रहते हैं । जो खुशी और शांति उन्हें अपनों के बीच मिल पाती, वह नहीं मिलता है । आजकल तो जीवन की आपाधापी तथा परिवार के घटते आकार एवं बिखराव , बुजुर्गों की समस्या को और ही कष्टप्रद बना दिया है । कुछ परि्वार तो इन्हें बोझ के रूप में लेते हैं । वृद्धावस्था में शरीर थकने के कारण हृदय सम्बंधी रोग , रक्त चाप, मधुमेह, जोड़ों का दर्द जैसी आम समस्याएँ उत्पन्न होती हैं । जिंदगी की अंतिम दहलीज पर खड़ा व्यक्ति अपने जीवन अनुभवों को अगली पीढ़ी के साथ बाँटना चाहता है , लेकिन उनकी दिक्कत यह होती है, कि युवा पीढ़ी के पास उनकी बातों को सुनने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता । मध्यम वर्ग में बुजुर्गों की समस्या की शुरूआत लगभग यहीं से होती है । यहाँ पर यह कहना कभी भी तर्कसंगत नहीं हो सकता कि यदि जवानी में आप अपने बच्चों से ठीक बर्ताव किये होते, तो यह दिन देखने नहीं मिलता । मैंने देखा है, देवता-तुल्य पिता और कौशल्या जैसी माँ के ऊपर बहू के साथ-साथ खुद उनके संतान मिलकर अत्याचार ढाहते हैं, उसे गाली-गलौज करते हैं । घर के बाहर दरवाजे पर, एक कोने में रहने को मजबूर करते हैं, उनसे यहाँ तक सुना है, कि पहले तो बूढ़े लोग रुई के गट्ठर समान हल्के-फ़ुल्के लगते हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों और अधिक बूढ़े होते जाते हैं, त्यों-त्यों वे गीले रुई के समान बोझिल हों तब उन्हें ढ़ोना मुश्किल है; जब कि हमारे ही देश में, श्रवन कुमार जैसे संतान हुए, राम हुए , जिन्होंने पिता के सम्मान ,श्रद्धाऔर आग्या पालन के लिए 14 साल वनवास भोगे ।

यह सच है, जब हम दूसरों के बुढ़ापे पर हँसते हैं, तब यह भूल जाते हैं, कि हमारा भी बुढ़ापा हमारे पीछे छिपकर खड़ा है । जीवन का सच मृत्यु तक हैबाद का किसे पता है, जो इस बात को समझते हैं, वे यह भी समझते हैं, कि दुनिया की सारी दौलत मिलकर भी, माँ-बाप का सुख नहीं दे सकता है । उनके लिए माँ के चरणों में स्वर्ग और पिता के चरणों के नीचे सारा आसमाँ होता है । दुख की बात है, हमारे देश में लगभग 60% बुजुर्गों को अपनी जीविका चलाने के लिए मिहनत और मजदूरी करनी पड़ती है । देश का बदलता हुआ सामाजिक, आर्थिक परिवेश बुजुर्गों की दशा को और ज्यादा दयनीय बना रहा है । परिवार के युवावर्ग रोजी-रोटी के लिए घर छोड़कर निकल जाते हैं, तब घर में निराश्रय रह जाते हैं हमारे बुजुर्ग, ईश्वर और भाग्य भरोसे !

बुढ़ापे को लाख जतनकर भी, टाला नहीं जा सकता है, हाँ इसे थोड़ी दूर रखा जा सकता है । जैसे बहुत मात्रा में पानी पीना, इससे किडनी को वनिस्पत अधिक काम करना पड़ता है । आयुर्वेद के अनुसार, अधिक पानी पीने से व्यक्ति में बहुत जल्द बुढ़ापा आता है । अधिक पानी पीने से पित्त और कफ़ का संतुलन बिगड़ जाता है । भोजन करते समय या भोजन के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिये , और जब भी पीना हो, हमेशा बैठकर पीना चाहिये , खड़े होकर नहीं । रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी जगना बहुत लाभप्रद होता है, इससे दूर-दूर तक दुनिया का दुख दूर भाग जाता है । दिन भर या सुबह देर तक सोना, बुढ़ापे को जल्दी आमंत्रित करता है । समय पर नहीं सोने से , नींद ठीक तरह नहीं आती है, इससे दिमाग थका हुआ महसूस करता है , और वजन भी बढ़ जाता है । हर बढ़ते उम्र के आदमी को गरिष्ठ भोजन से दूरी बनाये रखना चाहिये । गरिष्ठ भोजन दाँतों को तकलीफ़ तो देता ही है, शरीर को भी उसे पचाने में ज्यादा ऊर्जा खर्च करना पड़ता है । गरिष्ठ भोजन में मांस, मछली, आलू, अरबी आदि के अलावा मसालेदार चीजें भी गरिष्ठ होती हैं । ये आँतों को कमजोर तो करते ही हैं ; साथ-साथ कब्ज, अजीर्ण, एसिडिटी आदि उदर सम्बंधी रोग भी होने लगते हैं , जो बुढ़ापे को जल्द आमंत्रित करता है । आदमी को हमेशा भूख लगने पर ही खाना चाहिये और वह भी अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिये । खाते समय दूध, छाँछ ,सूप,ज्यूस आदि पदार्थों का सेवन शरीर के लिए बहुत लाभप्रद होता है । क्रोध , चिंता, तनाव, भय, घबड़ाहट, ये सभी बुढ़ापे को न्योता देने वाले कारक हैं । नमक का अधिक सेवन भी बुढ़ापे को जल्द बुलाना होता है । कारण सोडियम की मात्रा शरीर में अधिक होने से शरीर में कोशिकाओं की आयु तेजी से बढ़ने लगती है , इतना ही नहीं , इससे हृदय रोग की भी बीमारी आ जाती है । इसलिए हमें अत्यधिक नमक के व्यवहार से परहे़ज करना चाहिये । उसी तरह तंबाकू, धूम्रपान, शराब आदि नशीली पदार्थों का सेवन शरीर के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है । पहले तो इन्हें आदमी पीता है, बाद ये आदमी को पीने लगते हैं । स्मोकिंग से त्वचा खुश्क हो जाती है, चेहरे पर बे-उम्र झुर्रियाँ पड़ती हैं ।

शोधकर्ताओं का मानना है कि, हमारी जीवन शैली ठीक न हो तो, बुढ़ापा तेजी से बढ़ता है । इसलिए बुढ़ापे में सक्रिय रहना चाहिये । दिन में दश घंटे से अधिक बैठने से बचना चाहियेतथा हर हफ़्ते नितंब, पीठ, पेट, छाती, कंधे और बाँहों जैसे महत्वपूर्ण मांसपेशियों वाले हिस्सों से जुड़ी कसरत कम से कम दो बार जरूर करना चाहिये । इस तरह नाना उपायों से बुढ़ापे को सदा के लिए तो नहीं, तब कुछ अवधि के लिए दूर रखा जा सकता है , ऐसे तो एक दिन बुढ़ापा तो सबका आना है , क्या गरीब क्या अमीर, क्या संत क्या फ़कीर ।


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