चाहा था इस रंगे- जहां में अपना एक ऐसा घर हो
जहाँ जीवन जीस्त1 के कराह से बिल्कुल बेखबर हो
मुद्दत हुई जिन जख्मों को पाये, अब उनके
कातिल कीचर्चा इस महफ़िल में क्यों कर हो
मैं क्यूँ रद्दे-कदह2चाहूँ,मैंने तो बस इतना चाहा टूटकर
भी जिसका नशा बाकी रहे,ऐसी मिट्टी का सागर हो
बदनामी सेडरता हूँ, दिले दाग से नहीं, बशर्ते कि
वह दागअन्यसभीदागों से बेहतर हो
हसरतों कीतबाही से तबाह दिल का हाल न पूछो
तुमने पिलायाजो जहर ,उसका कुछ तो असर हो
- जिंदगी 2. मदिरापात्र का खंडन
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