चिरागे - राह तो है , दीखता मंजिल नहीं
आपकी बातों में दम है, सीने में दिल नहीं
बज्मे - हस्ती1 की तस्वीर हूँ , महफ़िल में
होकर भी , मैं महफ़िल में शामिल नहीं
खुदा ने आदमी की किस्मत में चार गिरह कपड़ा
तो दिया,जिंदगी-ए-कश्ती को मयस्सर साहिल नहीं
बुतखाने में सोता हूँ,उठाता हूँ नाज बुत का, मगर
निर्माण होता जिससे जन्नत, मैं वो गिल2 नहीं
जब तक चमन में खिजाँ नहीं आती बहारे-ज़ाफ़रा3
गुलिस्तां में होती दाखिल नहीं
1.दुनिया की महफ़िल 2.मिट्टी 3.केसर की बहार
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