‘चोरी- डकैती, खून-खराबा, अपना मान हुआ
पग-पग लाशें बिछीं, शहर वीरान हुआ
महाकाल बन आतंकी घूम रहे गलियों में
आदमी का मरना कितना आसान हुआ
दुःखी इंसान किसके गले लगकर रोय
पराया तो पराया, अपना भी अनजान हुआ
जहाँ से चलकर मनुज यहाँ तक पहुँचा
मुड़कर देखा तो, वह भी गुमनाम हुआ
हर तरफ है बस यही चर्चा, पाखंडी बाबा
जो आदमी का था दुश्मन, अब भगवान हुआ'
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