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Dr. Srimati Tara Singh
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दादी का स्वर्ग

 

दादी का स्वर्ग

दिन-रात दादी के आँचल से लिपटा रहनेवाला ’सोनू’ आज स्कूल से आकर चुपचाप अपने कमरे में जा बैठ गया| सोनू के इस व्यवहार से दादी डर गई| वह उसके पास गई और पुचकारकर पूछी, ‘बेटा! आज आप इतने दुखी और परेशान क्यों हैं? क्या किसी ने आपको डाँटा है, या आपकी तबीयत ठीक नहीं है?

सोनू अपनी आँखों का आँसू पोछते हुए, बोला, ‘दादी मुझे कुछ नहीं हुआ है, तुम नाहक परेशान मत हो| मगर दादी कब मानने वाली थी? उसने सोनू को अपनी गोद में बिठाते हुए कहा, ‘अगर तुमने अपनी बेचैनी का कारण मुझे नहीं बताया, तो मैं यहीं बैठकर रोऊँगी|

दादी की ममता, सोनू को अपने मोह-बंधन में ऐसा जकड़ लिया, कि सोनू बिना बताये रह न सका| उसकी चिंता दूने वेग से फ़टकर बाहर निकल आई और दीनतापूर्ण नेत्रों से, दादी को देखते हुए कहा, ‘दादी! मेरे टीचर का कहना है, ’स्वर्ग जाने का रास्ता बड़ा ही ऊबड़-खाबड़ है| इस पर हर कोई नहीं चल सकता, बूढ़े व्यक्ति तो बिल्कुल ही नहीं; इसे दुरुस्त और सुलभ बनाने के लिए, आदमी को समय रहते धर्म कमाकर जमा करना चाहिये, क्योंकि धर्म की पूँजी ही इतनी दूर की सफ़र को पूरा करा सकता है| इसलिए मैं तुमको चारो धाम का दर्शन कराना चाहता हूँ| काशी, प्रयाग, मथुरा, वृंदावन ले जाना चाहता हूँ, मगर इसके लिए धन चाहिये, जो मेरे पास नहीं है|

दादी, सोनू का माथा चूमती हुई, स्नेह मिले गर्व से कही, ‘बस इतनी सी बात है| दादी को आप स्वर्ग भेजना चाहते हैं, और इसके लिए आपके पास पैसे नहीं हैं! अरे पगले! ऐसे तो आप जिस स्वर्ग की बात करते हैं, मैं वहाँ नहीं जाना चाहती| आपके बगैर मेरा कोई स्वर्ग नहीं हो सकता; आप जहाँ है, वहीं मेरा स्वर्ग है|

सोनू ने रोते हुए कहा, ‘यह धरती है, स्वर्ग तो ऊपर है, दादी| वहाँ जाने के लिए, बहुत मिहनत और पैसे की जरूरत पड़ती है|

दादी, गर्व से सोनू की ओर देखती हुई कही, ‘बेटा! किसने आपसे कहा कि स्वर्ग ऊपर है? जिसने भी बताया, शायद उसे मालूम नहीं है कि स्वर्ग, नरक सब यहीं है, इसी धरती पर| ऊपर कुछ नहीं है, श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, ‘काम, क्रोध और लोभ; नरक के ये तीन द्वार हैं| तीनों को एक शब्द में तृष्णा कहते हैं| तृष्णा के कारण ही लोग पाप करते हैं और पाप नरक ले जाता है| आदमी को इसी धरती पर रहकर अपने पाप का फ़ल चखना पड़ता है| तृष्णा के नष्ट हो जाने पर काम, क्रोध आदि विकार नहीं रह जाते| निर्विकार मन कभी पाप नहीं करता, वह स्वर्ग का सुख यहीं रहकर भोग करता है| ऐसे भी सशरीर कोई स्वर्ग नहीं जा सकता, उसके लिए शरीर को त्यागना पड़ता है| आत्महीन शरीर के पास स्वर्ग-नरक का विकल्प नहीं बचता| बौद्ध धर्म में स्वर्ग-नरक को निचली और ऊपरी दुनिया कहते हैं; इसका अर्थ यह नहीं कि एक संसार ऊपर और एक संसार नीचे है| ये तो केवल सांकेतिक शब्द हैं, जो आपकी समझ और अनुभवों से सम्बंधित हैं|

दादी की बात पूरी भी न हो पाई थी, कि सोनू उत्सुकतावश, तत्परता से बोल उठा, ‘तुम्हारी बात को मैं कैसे मानूँ, जब कि आज मेरा दोस्त बिरजू बोल रहा था, ‘उसकी दादी, नरक से स्वर्ग में चली गई| अगर स्वर्ग-नरक, दोनों ही इसी पृथ्वी पर हैं, तब वह किस स्वर्ग में गई?

दादी मृदु मुस्कान बिखेरती हुई बोली, ‘बेटा! आपके दोस्त की दादी काफ़ी दिनों से बीमार रह रही होगी, जिससे कि मरकर वह छुटकारा पा गई, अर्थात स्वर्ग चली गई, जहाँ कोई दुख-कष्ट नहीं पहुँच सकता|

सोनू ने दादी से कहा, ‘क्यों?

दादी बोली, ‘आत्मविहीन शरीर, दुख-सुख का अनुभव नहीं कर सकता| उसे जला दो, काट दो, जो खुशी कर दो; उसकी आँखों से आँसू नहीं निकलते, कारण जो उसके लिए आँसू बन आँखों से झड़ता था, वह तो उसका साथ छोड़ दिया| इसलिए स्वर्ग-नरक इसी धरती पर हैं; उसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है और मेरा स्वर्ग, मेरा घर है; जहाँ आप हैं, मैं हूँ| ऐसा भी स्वर्ग क्या, जो अपनों से विच्छेद करा दे| मुझे ऐसा स्वर्ग नहीं चाहिये| तो क्या, फ़िर भी आप मुझे स्वर्ग भेजेंगे?

सोनू हलसता हुआ दादी के गले से लग गया और बोला, ‘हमारा स्वर्ग, हमारा घर है| तुमको अब कहीं नहीं जाना है|




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