Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दिल्ली

 

दिल्ली


दिल्ली, आजतुम्हारी  आजादी की

साठवीं  साल  गिरह पर, भारत की

नग्न, मूढ़ ,अशिक्षित ,क्षुधित,लुंठित

तम  पीड़ित  जनता पूछ रही तुमसे

हम  तो  आज़ाद हुए दिल्ली, मगर

किसके हाथ लगी,स्वतंत्रता की कुंजी


दाने - दाने  को  हम  तरस  रहे

तन ढँकने को मिलती नहीं लँगोटी

दुधमुँहे  बच्चे ,दूध को बिलख रहे

तुम नर्म,लाल मखमली गलीचे पर

टाँग पसारकर,कैसे सो रही दिल्ली


हमें  खुशी  है  कि  तुम्हारे पाँव की जंज़ीर कट गई

मगर,हमारे पाँव में दीनता की कसती ही जा रही बेड़ी

मनुज  के पाँव तले,मनुज का सम्मान मर्दित हो रहा

दिशि -   दिशिमें फ़ैलती जारही  उदासी


लगता  , समर  तो  शेष  हो  गया  हमारा

मगर  स्वराज  मिलना  अभी  भी  है बाकी

जीर्ण,विरस,,विश्री जिंदगी क्रुद्ध बवंडर अंधड़ के

संग  खेल –खेल  कर ,युगतम  की संध्या में

डूबी  जा  रही, गाँधी  तो  रहे नहीं,अब कौन

बनेगा , इनके जीवन रथ का  सारथी




प्राणी  के  प्रति  प्राणी  के  दिल  में

पहले   सी  ममता  अब  नहीं  बची

मंगल में चिर विनाश   हँसता

नव  बंधुओं  की  आँखों  का  काजल

अश्रुजल में धुला जा रहा,बीमार माँ की 

दवा   के पैसे  नहीं, जवान  क्षुदित 

बेटी, पेट  पर  कपड़े  बाँधकर सो रही



याद  रख  दिल्ली ,जब  तक  देश  के 

घर- घर में रोटी-कपड़ा-मकान नहीं होगा

क्षुधित , बीमार  देश  की निर्धन जनता

तुमको कैसे माफ़ करेगी , दिल्ली

दुंदुभी  तो  तुम  पहले  ही  बजा दिया

अब हो सकता है,आहों की फ़ौज सजाकर

तुमसे पूछने  हम  आ जायें  दिल्ली 



Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ