धन - अभिमानी
दीन – दुखियों के श्रमबल से पोषित
अहंकारी , व्यभिचारी , हठी , दर्पी
भव जीवन का सकल प्रयोजन
बर्बरता के बाहुबल से करता अर्जित
राष्ट्र, धर्म, समाज, युग प्रलयंकर
हृदयहीन, नग्न आत्मा क्षुधित
अग्निचंड, अंतर्जीवन से विशृंखलित
दुर्जन, संपदा, सुराओं से संसेवित
नि:संशय रावण का वंशज है संभावित
मानवता इससे सदा ही रही वाधित
युगविनाशक, कालपूजक, अन्यायी
तन का शिष्ट, सुंदर,कोमल, आकर्षित
निज जीवन के हित,लाचारों को कर
संगठित,सुबह-शाम को करता निर्मित
जीने के सारे उपकरणों को कर अधिकृत
वायु काल को करता संचालित
अजर, अमर, मानवता का यह दुश्मन
अमूर्त्त होकर भी, भव में रहता मूर्तित
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY