Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दीखता मंजिल नहीं

 


चिरागे - राह तो है, दीखता मंजिल नहीं

आपकी बातों में दम है, सीने में दिल नहीं


बज्मे - हस्ती1 की तस्वीर हूँ, महफ़िल में

होकर भी, मैं महफ़िल में शामिल नहीं


खुदा ने आदमी की किस्मत में चार गिरह कपड़ा

तो दिया, जिंदगी-ए-कश्ती को मयस्सर साहिल नहीं


बुतखाने में सोता हूँ, उठाता हूँ नाज बुत का, मगर

निर्माण होता जिससे जन्नत, मैं वो गिल2 नहीं


जब तक चमन में खिजाँ नहीं आती

बहारे-ज़ाफ़रा3 गुलिस्तां में होती दाखिल नहीं


1.दुनिया की महफ़िल 2.मिट्टी 3.केसर की बहार

 


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