दिल में दिल बनकर रहता हूँ, फ़िर भी कहती, तुम्हारा
न कोई अपना मुकाम, तुम गुजरा हुआ जमाना हो
तुममें जमाने- रफ़्तार की लज्जत ओ आरजू-ए-जहान1
की चाहत नहीं, तुम एक उलझा हुआ फ़साना हो
तुम अफ़सुदगी2 हो, तुममें सैर- बहार ओ बाग़ की चाह नहीं
तुम अपने निगाहे-शौक का दीवाना हो
तुमने मेरी तरफ़ देखा, मेरे जिगर को नहीं देखा
तुम जन्मों का पहचाना होकर भी एक अनजाना हो
इस कदर भी फ़िरेगा रंगे-जमाना3, मालूम न था आइने
को क्या याद दिलाना, कि तुम आशिक मेरा पुराना हो
1.सुंदर दुनिया 2. ऐतिहासिक 3. संसार की दशा
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