Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दो तपस्वी

 

दो तपस्वी

बूढ़े जुगतराम अचकन का बटन लगाते, अपने सत्तर वर्षीय पत्नी से बोले ------पुष्पा ! एक ग्लास पानी देना, बड़ी प्यास लगी है |
पुष्पा काँपते स्वर में कही ----- अभी लाती हूँ | पर आज तो तुमने रोती खाई नहीं , फिर प्यास कैसा ?
जुगातराम ,दीनभाव से कहा ---- जिसकी आस नहीं, तो उसकी प्यास भी नहीं |
पति के मुँह से ऐसी बातें सुनकर पुष्पा के मन में ऐसी प्रबल, तूफानी आवेश उठा , कि वह जुगतराम के क़दमों पर गिर पड़ी , और चाही कि पति की आँखों के आँसू अपने आँसुओं से धो दूँ | वह समझ गई कि जुगतराम की निर्जीव, आहत संतावना के लिए विकल हो रही है | उस रोगी की तरह, जो जीवन सूत्र क्षीण हो जाने पर भी वैद्य के मुख की ओर आशा भरी आँखों से टाक रहा हो | मन की इस दुर्बल दशा में, उसके प्राणहीन धमनियों में रक्त संचार करने पुष्पा उठी और जुगतराम को अपने गले से लगाकर फूट-फूट कर रोती हुई बोली -----जुगतराम, जिंदगी के उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते-चलते, हम थक चुके हैं | भोला के इंतजार में कब तक भूखा-प्यासा जीते रहोगे | अब वह हमें भूल चुका है, अन्यथा इस दो साल में एक बार भी तो हमारा खबर लेने आता | शादी के बाद हमें ऐसा भुलाया, जैसे मानो हम कभी, उसके कोई थे ही नहीं |
जुगतराम बहुत देर तक सोचा विचारा, फिर टिन के ग्लास से घट-घटकर पानी पीकर खड़ा हो गया और बोला----- हाँ, पुष्पा , ये बूढी आँखें, भोला की राह निहारते थक चुकी हैं | इसलिये यहाँ से निकल जाना अच्छा होगा , और दोनों एक अनिर्दिष्ट दिशा की ओर चल दिए | चलते-चलते बहुत दूर निकल गए | अचानक पुष्पा की नजर सूरज पर पड़ी , देखी शाम ढलने लगी, तभी सूरज पश्चिम की ओर चला आया है | उसने जुगतराम से कहा----- शीघ्र ही अन्धेरा छाने वाला है | इसके पहले कि आगे नजर को दिखना बंद हो जाये , चलो चलकर कहीं रात गुजारें | तभी एक गाँव के बाहर तालाब के किनारे, स्कूल का एक खंडहर दिखाई पड़ा | दोनों वहीँ जाकर कोने से लगकर बैठ गए, और सुबह का इंतजार करने लगे |
पौष का महीना था , प्रात: आँखें खोल रहा था | किसान अपने खेतों पर जान की तैयारी कर रहे थे | मगर ठंढ की वजह से अधिकतर लोग अब भी सो रहे थे , पर बैजू जो अपने जीवन से कभी विरत नहीं था , न जाने कौन सी आशा की लता उसके मन में कली खिलकर फूल बनने के लिए प्यासी थी | उसकी आँखों से नींद गायब थी | वह किसी उदासीन अजगर की तरह अब भी अपने बिस्तर पर पडा हुआ था | तभी स्कूल की तरफ भागे जा रहे, गाँववालों की शोर सुनाई पड़ी | वह भागा-भागा दरवाजे पर आया | देखा बाल्टी, घड़ा, जिसे जो मिला, उसमें पानी भरकर स्कुल की तरफ भागा चला जा रहा है | बैजू को कुछ समझ में नहीं आया | वह जब भीड़ के साथ थोड़ी दूर गया , देखा,स्कूल जल रहा है | बुझाने वाले की चीख-पुकार से सारा वातावरण भयभीत है | लोग अपनी जगह खड़े होकर ऊपर वाले को याद कर रहे हैं |
जब आग पूरी तरह बुझ गई, लोग स्कूल के भीतर गये,यह सोचकर कि कोई जानवर, तो नहीं फंसा है | अचानक किसी की नजर कोने में बैठी दो अधजली लाश पर पड़ी | लोग अच्चंभीत हो चिल्ला पड़े, यह क्या, यहाँ तो दो जिंदे लोग भी जल गए | किसी ने कहा----- इस खंडहर में, कोई मनुष्य क्यों कर आयेगा, निश्चय ही कोई चोर-उचक्का होगा | ग्रामीणों ने अच्छी तरह उसकी जाँच-परख किया , पता चला कि एक तपस्वी और एक तपस्विनी हैं | उनके पास से एक अल्यूमिनियम के ग्लास के सिवा और कोई सामान नहीं है |
इस घटना को घटे, दश साल बीत गये | एक दिन अचानक गाँव का मुखिया, गाँववालों की पंचायत बुलाया, और कहा---- हमारे गाँव में पर्यटन का कुछ तो है नहीं, जो दूसरे गाँववाले यहाँ आना-जाना करें, कुछ खरीदें-बेचें , जिससे दोनों तरफ के गरीब परिवारों का भरण-पोषण हो | मुखिया की बात सुनकर लोग उपहास कि नजर से मुखिया की तरफ देखे , मानो कह रहे हों , कितने नालायक हैं आप, हमलोग सरकार थोड़े ही हैं | एक पर्यटन-स्थल बनाने में जो खच पडेगा, वो कहाँ से आयेगा? मुखिया समझ गया, ये लोग क्या कहना चाह रहे हैं | तभी मुखिया ने चुप्पी तोड़ते हुए कहाः---- आपलोगों को याद , आज से होगा , दश साल पहले, हमारे गाँव के स्कूल में दो तपस्वियों की जलकर मौत हो गई थी |
गाँववाले बोले ------ हाँ, वो तो याद है, पर हमें बताइये, हमें क्या करना है ? हम तो उनको जानते तक नहीं |
मुखिया, मुस्कुराते हुए कहा---- आपलोगों को करना कुछ नहीं है | बस, आपकी सहमति चाहिए , बाकी मैं हूँ ना ?
मुखिया की बात लोगों को बेढंगी सी लगी | मुखिया को भी लगा, गाँववाले कहीं, मेरे विचार का वहिष्कार न कर दें | उसने कहा----- सोच रहा हूँ, उन दोनों तपस्वी की याद में , यहाँ एक पर्यटन-स्थल बनाना कैसा रहेगा ? सरकार से मेरी बात लगभग पक्की हो चली है, अर्थात् अनुमति मिल गई है , कि मैं स्कूल के दश कट्ठे जमीन में से एक कट्ठा बेच सकता हूँ | मैं सोचता हूँ, जमीन बेचकर, जो पैसे मिलेंगे ,उससे अपने गाँव के बाहर, तालाब के किनारे एक भव्य, उन दोनों की मूर्त्तियाँ लगाकर , एक पर्यटन-स्थल बनाऊँ | इससे यह फायदा होगा, कि यहाँ आने-जाने वालों की भीड़ लगी रहेगी | जिससे दोनों ही ओर के लोग अपनी जरूरत की चीजें खरीद -बेच सकेंगे, और हमारा गाँव , द्रुतगति से आत्म निर्भर बन जाएगा |
लोग मुखिया की बात सुनकर चहक उठे, सबों ने एक स्वर में कहा------ तब देरी किस बात की, जितना जल्द हो, आप आरम्भ करें | हम सभी आप के साथ हैं | अगल-बगल के गाँव से मूर्त्तिकार बुलाये गए| उन दोनों तपस्वी की अधजली लाश में लौकती हुई धुँधली मुखाकृति को दिखाया गया | लगभग एक महीने में मूर्त्तिकार,मूर्त्तियाँ बनाकर , प्रस्तावित स्थान पर लगा दिये | मूर्त्तियाँ लगते ही ,विद्युत गति से यह खबर हर तरफ फ़ैल गई , लोग दूर-दूर से मूर्ति -दर्शन को आने लगे | चंदन-धूप, दीप जलाने के साथ, चढ़ावा, दान चढ़ने लगे | धीरे-धीरे वह जगह देवस्थान में परिवर्तित हो गया | तालाब के दोनों तरफ दूकानें सज गई, पर
शनै:-शनै: इन मूर्त्तियों पर विवाद भी उठते रहे | एल दिन, दूर गाँव का एक गिरिधर नाम का आदमी मेला देखने आया | भोला -मन्दिर का जमीं चूमा, बोला----- मेरे माता-पिता का भटकते-भटकते यहाँ पहुँचना, मेरी निर्दयता और अमानुषीयता का फल है | ये लोग देवता -तुल्य थे | मुझ जैसा दुष्ट, दुरात्मा , दुराचारी मनुष्य ,ऐसे महात्मा के सन्तान योग्य नहीं था | ऐसा कोई कष्ट नहीं था, जिसे मेरे कारण, मेरे माता-पिता को झेलना न पडा हो , पर इन दोनों ने कभी अपना मन मिला नहीं किया | सदा ही प्यार बरसाया | दोनों का अत्यधिक प्यार देखकर मुझे संदेह होता था कि, दोनों ही मेरे साथ कोई कौशल कर रहे हैं | उनका संतोष, उनकी भक्ति, उनकी गंभीरता मेरे लिए दुर्बोध थी | मैं समझता था कि ,हम दोनों पति-पत्नी से कोई चाल चल रहे हैं | अगर वे मुझे छोटी-छोटी गलतियों पर डाँटते, कोसते, ताना देते, तो उन पर मुझे विशवास होता | दर असल उन दोनों का ऊँचा आदर्श मेरे अविश्वास का कारण बना, और मैं शहर से कभी लौटकर उन दोनों के पास नहीं गया |
मुखिया, बात काटकर बोल------ आपकी बुद्धि तब कहाँ गई थी ? आपको ज़रा भी ध्यान रहा होता,कि आपकी निर्दयता, आपकी माँ के कोख को कितना कलंकित कर रहा है ? पर आप अपना अपराध मेरे सामने निर्भयता से क्यों स्वीकार रहे हैं ? आपके मनोभावों को समझ नहीं पा रहा हूँ | फिर कठोर स्वर में बोले----- आप तो इस भाँति , बातें कर रहे हैं, मानो कोई महात्मा हों | आपको तो मेरे पास न आकर, सामने तालाब में डूब मरना चाहिए |




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