Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दुख्खन की बेटी

 

दुख्खन  की  बेटी 


झोपड़े के द्वार पर ,शम्भू और उसका बेटा शिवा,दोनों बुझे हुए अलाव के समान चुपचाप बैठे हुए थे , और अन्दर उसकी बहू शिवानी ( शिवा की पत्नी ),बुखार में बेहोश पड़ी ,जिदगी से जंग लड़ रही थी | शिवानी की ,नौ महीने की छोटी बच्ची जाने कब से रोती,छाती से लिपटी ,दूध पीने के लिए रह-रहकर इस कदर क्रंदन कर उठती थी ,कि उसकी आवाज को सुनकर ,बाहर बैठा शिवा ,अपना दिल थाम लेता था | घर का सारा वातावरण सन्नाटे में डूबा हुआ था | जाड़े की अँधेरी रात थी, कहीं कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था ,सिवाय शिवानी के कमरे में जल रहे कुप्पी के | शिवा, अपने पिता, शम्भू से आर्द्र स्वर में कहा, ‘ बाबू ! लगता नहीं कि शिवानी बचेगी ! 

शम्भू, सिवा के पीठ पर हाथ फेरकर बोले ,’बेटा ,जा,एक बार देख तो आ ,और फिर गंभीर फिक्रमंद होकर  बोले, काश कि आज तुम्हारी माँ होती !

शिवा, पत्नी के कमरे की ओर बढ़ता, ठिठककर खड़ा हो गया और,ऊपर देखकर कहा,’ हे ऊपरवाले ! तुम जब मारने पर अमादा हो,तो मैं देखकर ही क्या करूँगा ? तुम पाषाण ह्रदय हो ,स्नेहहीन हो, अकरुण हो,मिथ्या हो  | समझ नहीं आता, तुम्हें और क्या कहकर कोसूँ ? यदि तुम इस क्षण मेरे सम्मुख होते, तो तुम्हारे इस बज्र- हृदयता का उत्तर देता | मैं कह रहा हूँ , ‘ तुम परम-पिता नहीं हो ,मेरा क्या बिगाड़ लोगे ,सब कुछ तो बिगाड़ ही दे रहे हो ,अब और बिगाड़ने के लिए मेरे पास है ही क्या ,जो बिगाड़ोगे ? मेरे प्राण लेना चाहते हो , ले लो | मैं भी मरना ही चाहता हूँ | अच्छा होगा, तुम्हारे ही हाथों मरना |

               शिवा का भय से हाथ-पाँव काँपने लगा | वह धीरे-धीरे शिवानी के कमरे की ओर बढे जा रहा था | पाँच हाथ की दूरी तय करने में ,उसने दश मिनट लगा दिए | कुप्पी की रौशनी में भी, शिवानी का कमरा भयावह प्रतीत हो रहा था | वह दीवार की ओट में खड़ा हो गया ,मानो किसी ने उसके पाँव बाँध दिए | आधा घंटा तक यही सोचता रहा, शिवानी सो रही है, और नन्हा भी ; जगाऊँ या लौट जाऊँ | कर्तव्य धर्म ने अपना सारा बल लगा दिया , मन के प्रबल वेग को रोक न सका ,और अपोल अश्रु से भींगे हुए , लम्बी-लम्बी सिसकियाँ लेता हुआ ,आर्द्र स्वर में पूछा , ‘ शिवानी ! तबीयत कैसी है ?’

शिवानी ने कुछ उत्तर नहीं दिया | वह सजल नयन होकर फिर से कहा ,’तुम नाराज हो,आँखें खोलो ,यह कहकर सिसकियाँ लेने लगा |’

              जब शिवा को लौटने में काफी देर हो गई , तब पिता ( शम्भुनाथ जी ) दौड़ता हुआ शिवानी के कमरे में गया  | देखा,शिवा ,चारपाई के पास अपने दोनों हाथ बांधे खड़ा,सिसक 


रहा है , और शिवानी की आँखें बंद हैं | वे शिवा से कुछ कहना चाहे ,पर उनका स्वर उनके वश में नहीं था | वे आँख का आँसू पोंछते हुए ,सीधा डॉ. के घर पहुँचे,बोले , ‘ डॉ. साहब ! मेरी बहू, आज एक सप्ताह से तेज बुख़ार में तप रही है | आज तो हद ही हो गया | सुबह से आँखें नहीं खोली, आप शीघ्र चलिए , मेरे घर को उजड़ने से बचा लीजिये |’

डॉ. ने कहा,’ शम्भूनाथ जी, क्या बताऊँ ,आज घर-घर की यही कहानी है | किसी का बेटा बीमार है, तो कोई खुद, कहीं-कहीं तो पूरा का पूरा परिवार बीमार पड़ा हुआ है |’

डॉ. ने शिवानी का गंभीर परिक्षण के बाद कहा,‘ शम्भुनाथ जी, आपके घर करुणा आ गई है  |’

शम्भुनाथ जी ,अचम्भित हो बोले, ‘ करुणा,डॉ. साहब ,आप किस करुणा की बात कर रहे हैं ?’

डॉ. गंभीर हो, अफ़सोस कर बोले ,’ वही दुक्खन की बेटी,बाप सेर तो बेटी सवा सेर ; एक डालता है, तो दूसरा पीसता है |’

शम्भूनाथ जी, आहत स्वर में पूछे ,’ये दोनों बाप-बेटी ,कहाँ के रहने वाले हैं ?’

डॉ. ने दबी आवाज में कहा, ‘ जहाँ कहीं भी,ये लोग अपना घर बसा लेते हैं |’

शम्भुनाथ जी ,डॉ. की तरफ करुणा भरी  दृष्टि से देखकर पूछा,’ इसे आने से कैसे रोका जा सकता है ?’

डॉ. , आप सावधान रहिये| अपना दरवाजा बेमतलब खुला नहीं रखिये | जब भी बाहर कहीं से लौटिये ,सबसे पहले देखिये ,आपके साथ, आपके घर करुणा तो नहीं आ गई ,और तो बाकी ऊपरवाले की इच्छा  |

शिवानी अचानक आँखें खोली,और संकेत द्वारा शिवा को अपने पास बुलाई , कही,’ मुझे अपने हाथ से थोड़ा पानी पिला दो | यह कहकर शिवानी आराम से सो गई | शिवा को विश्वास हो गया, बस यह अंतिम समय है ,दीपक बुझने से पहले जगमगा उठता है | शिवा रो-रोकर कहता रहा, शिवानी आँखें खोलो ,मैं पानी लिए खड़ा हूँ, और तुम बगैर पीये सो रही है | यह नहीं हो सकता, जैसे कोई पक्षी गोली खाकर परों को फड़फड़ाता है, और तब बेदम हो गिर जाता है | उसी भाँति शिवा,शिवानी को गले लगाने के लिए दौड़ा  और अचेत होकर गिर पड़ा | 

पिता शम्भूनाथ जी ,आकाश की और दोनों हाथ उठाकर कहे,’ हे दयानिधि ! मैंने अपने  तरुण और होनहार ,बेटे और बहू को तुम्हें सौंप दिया | मेरे पास इन मूल्यवान वस्तुओं के सिवा और कुछ नहीं है, जो तुमको अर्पित करूँ ,पर हाँ ,तुमसे मेरी एक विनती है | जितना जल्द हो , मुझे भी यहाँ से ले चलो | आत्मा विहीन शरीर, जिन्दा कैसे रहेगा ?

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