इक तू नहीं साथी, गम सारा मेरे साथ है
आज फ़िर वही दिन, वही जुल्मते-रात1 है
मौत रहती है, जिंदगी पर घात लगाये
हौसला, मुस्ते-खाक2 का बेबुनियाद है
नजर बंद कर देखती हूँ जब तमशाये-दिल
दीखता, रूह3 से कालिब4 आजाद है
दो दिन की सैर में तमाम हो जायेगा यह
गुलिस्तां, वक्त से कैसी शिकायत, कैसा फ़साद है
मैं तो बस इतना जानती, बागे-आलम5 जो
महबूब है, मैं उसका शागिर्द, वह मेरा उस्ताद है
1. खौफनाक रात 2. मुट्ठी भर राख 3. आत्मा 4. साँच 5. संसार
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