फ़तेह सिंह
संध्या की कालिमा की निर्दय निर्लज्जता में, कुएँ के मुरेड़ पर बैठा फ़तेह सिंह, पत्नी सबीना से पूछा, ‘सबीना! क्या तुम जानती हो, रुदन में कितना उल्लास, कितनी शांति और कितना बल होता है?
सबीना, आँचल को सँभालती हुई बोली, ‘क्यों तुमको, आज इन सब बातों को जानने की जरूरत पड़ गई, अल्लाह का नाम न लेकर रुदन लेकर बैठ गये?
फ़तेह सिंह, कुएँ के पानी को निहारते हुए बोला, ‘जो किसी की स्मृति में, किसी के वियोग में, सिसक-सिसक और विलख-विलख कर नहीं रोया, वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है, जिस पर सैकड़ों हँसी न्योछावर है| उस मीठी वेदना का आनंद उन्हीं से पूछो, जिन्होंने यह सौभाग्य प्राप्त किया है| सच पूछो तो, हँसी के बाद मन खिन्न हो जाता है, आत्मा क्षुब्ध हो जाती है, मानो हम थक चुके हों, पराभूत हो गये हों| रुदन के बाद एक नई स्फ़ूर्ति, एक नवीन जीवन, एक नवीन उत्साह का अनुभव होता है, जैसा कि मैं आज अनुभव कर रहा हूँ| फ़िर काँपते लहजे में बोला, ‘मैं सदैव तुम्हारा एहसानमंद रहूँगा| तुमने उस वक्त मुझे सँभाला, जब मेरे जीवन की टूटी हुई किश्ती जीवन-सागर में गोते खा रही थी| वे दिन मेरी जिंदगी के बेहतरीन दिन हैं, उन स्मृतियों को मैं अपने दिल में देवता की तरह स्थापित कर उन स्मृतियों को मैं अपने दिल में देवता की तरह स्थापित कर पूजता आ रहा हूँ, और पूजता रहूँगा जीवन भर| सच पूछो तो, उस वक्त संसार में, मुझसे अधिक दुखी, जीवन से निराश, चिंताग्नि में जलता हुआ प्राणी-मूर्ति, शायद ही कोई था! मुझे अपने जीवन से इतनी नाराजगी थी,कि मैं काला साँप का भी स्वागत करने के लिए आतुर था| मुझे लगता था, अगर कोई मेरी रक्षा कर सकती है, इस चिंता से मुक्ति दिला सकता है, तो वह सुधा नहीं, विष है|
सबीना ने फ़तेह सिंह की ओर देखते हुए, दीनता से कहा, ‘फ़तेह सिंह तुम भूल जाते हो, कि तुम एक वेश्या को पत्नी बनाकर ब्याह लाये हो, और वेश्या को अच्छे-बुरे सभी प्रकार के आदमियों से साबिका पड़ता है| उसकी आँखों में आदमियों की परख होती है| मुझे तुममें और दूसरे व्यक्ति में बहुत फ़र्क दिखाई देता था| तुमको देखकर, तरस नहीं, एक सहानुभूति उत्पन्न होती थी| मैं समझ गई थी कि यह व्यक्ति एक रत्न है, जिसे समय की मैली चादर ने ढ़ंक रखा है, उसे हटाकर, झाड़-पोछकर अमूल्य बनाया जा सकता है| इसमें मेरा भी स्वार्थ था, मैंने तुम्हारे लिए जो कुछ भी किया, अपने स्वार्थहित किया|
फ़तेह सिंह अपना सर खुजलाते हुए बोला, ‘तुम भी कम नहीं थी, बला की सुंदरी थी| होश गँवा देने वाली तुम्हारी चाल थी| पहली नजर में ही मैं तुम्हारा गुलाम बन गया था|
सबीना शर्माती हुई कही, ‘दिल्लगी छोड़ो, मेरे बहुत काम पड़े हैं, अब मुझे जाना होगा| तुम्हारी उल्टी-सीधी बातों में रात के दश बज गये| मुझे खाना भी बनाना होगा, यह तो मैं भूल ही गई थी|
फ़तेह सिंह की मुद्रा सहसा तेजवान हो गई| उसकी बुझी हुई आँखें चमक उठीं, देह की नसें तन गईं| उसने सबीना की बाँह मरोड़ते हुए कहा, ‘तुम तो जाकर खाना बनाओगी, मैं यहाँ मुरेड़ पर बैठकर क्या करूँगा; कभी इतना भी तुमने नहीं सोचा? चलो, मैं भी चलता हूँ| इतना कहते, फ़तेह सिंह के यौवन काल के सरोवर में मुहब्बत के कमल खिल गये| चैत्र की पूर्णिमा थी, मगर सबीना के गोरे अंग के आगे चाँद की ज्योत्सना मात खा रही थी, जिसे देखकर फ़तेह सिंह के अंग-अंग से पहाड़ों की चोटियों पर के हिम की तरह पसीना चूने लगा|
फ़तेह सिंह, सबीना के आगे खड़ा होकर बड़े ही अदब के साथ बोला, ‘सबीना, देखो मेरी तरफ़; मुझे देखकर तुम्हें नहीं लगता है कि, तुम्हारी सुंदरता के सुरभ्य तट पर गर्मी कुछ ज्यादा है, अन्यथा कुएँ पर जब तक था, इतनी गर्मी तो वातावरण में नहीं थी|
सबीना, फ़तेह सिंह की बड़ी-बड़ी आँखों को स्नेह से देखी और आग्याकारिता सी जाग गई, बोली, ‘लगता है कोई भय, और उद्वेग तुम्हारे मन पर कुछ अधिक ही बोझ डाल रहा है|
यह सुनकर फ़तेह सिंह की दाढ़ी और मूँछों के भीतर छिपी दाँतों की पंक्तियाँ रगड़ उठीं; वह हँसी थी कि हृदय की मर्मांत पीड़ा की अभिव्यक्ति, समझना मुश्किल था, कहने लगा, ‘व्यवहार-कुशल मनुष्य, संसार के भाग्य से औरत की रक्षा के लिए जनमता है, जैसे मैंने जनम लिया है|
सबीना, स्थिर दृष्टि से फ़तेह सिंह को निहारती हुई पूछी, ‘वो कैसे?
फ़तेह सिंह, जाड़े की रात के समान ठंढ़े स्वर में बोला, ‘वो ऐसे; मेरे दिल में प्यार ने जैसे ही जोर मारा, ब्याहकर तुझे अपने घर ले आया|
सबीना ने अन्यमनस्क हो कहा, ‘इसमें नई बात क्या है?
फ़तेह सिंह हँसते हुए बोला, ‘लगता है, पिंजरे में गाने वाली चिड़िया, पर्वत-राशियों में आकर अपना राग भूल गई है|
सबीना,चुटकी लेती हुई उत्तर दी, ‘किसने तुम्हारा फ़तेह सिंह नाम रखा, तुम्हारे नाम से तुम्हारा थोड़ा भी मेल नहीं खाता? क्या ही अच्छा होता, जो तुम्हारा नाम हार सिंह होता? दिन भर बीबी से हारते रहते हो, और नाम रखते हो फ़तेह सिंह?
फ़तेह सिंह सँभलकर पास बैठते हुए कहा, ‘मनुष्य पर नाम का कुछ भी असर नहीं पड़ता| मेरे गाँव के पंडित जी को ही लो, नाम है धनिकलाल, मगर बेचारे के पास धन के नाम पर एक मिट्टी का घर है, लेकिन भिखना सेठ को देखो, करोड़ों का कारोबारी है और नाम है भिखना|
सत्य के रंग से रंगी, फ़तेह सिंह की ये बातें सबीना को अस्वस्थ कर गईं| सबीना ने इस तरह अपनी सफ़ाई दी, बोली, ‘फ़तेह सिंह, बुरा मान गये, मैं तो यूँ ही मजाक कर गई| क्या मुझे मालूम नहीं है, पुरुषों के लिए राजनीति, धर्म, ललितकला, साहित्य, इतिहास और ऐसे हजारों विषय हैं, जिनके आधार पर वे युवतियों से गहरी दोस्ती पैदा कर सकते हैं|
इस पर फ़तेह सिंह आग-बबूला हो उठा, चिल्लाकर बोला, ‘कामलिप्सा उन देशों के लिए आकर्षण का प्रधान विषय है, जहाँ लोगों की मनोवृतियाँ संकुचित रहती है, मै तो मुम्बई जैसे शहर में रह चुका हूँ| कितनी ही सुंदरियों के साथ मेरी दोस्ती थी, उनके साथ नाचा, खाया, घूमा; पर मुँह से कभी ऐसा शब्द नहीं निकला, जिसे सुनकर युवती को लज्जा से सिर झुकाना पड़े और फ़िर अच्छे और बुरे लोग कहाँ नहीं हैं?
रात के 2 बज चुके थे, पश्चिम में निशीथ के चतुर्थ पहर में अपनी स्वल्प किरणों से चतुर्दशी का चन्द्रमा हँस रहा था| पूर्व प्रकृति अपने स्वप्न मुकलित नेत्रों को आलस से खोल रही थी| सबीना का गोरा बदन चाँदनी की रोशनी में सहसा एक बार खिल उठा, प्रेम मुकलित फ़तेह सिंह का हृदय उसको छूने के लिए अधीर हो उठा| वह आगे बढ़ा, कि सबीना ने उसे यह कहते हुए रोक दिया, ‘सुनो, मन की उच्छृंखलता को न रोकना भी एक पाप है|
फ़तेह सिंह अपने गिरे मूँछों को ऊपर की ओर उठाकर धीरे से कहा, ‘पाप का यह रूप,जो वासना को फ़ाँसकर अपनी ओर मिला चुकता है, बड़ा कोमल अथक कठोर एवं भयानक होता है, तब पाप का सुख सुंदर ही नहीं आकर्षक के साथ-साथ इतना शक्तिशाली अनुभव होता है| उसमें विजय दर्प भरा होता है और ऐसा पाप, पाप नहीं कहलाता|
फ़तेह सिंह की बातों को सुनकर सबीना प्रेम-विभोर हो, विचलित हो उठी, उसके हृदय में भी पाप की सेना का आक्रमण बड़ा प्रबल होने लगा| वह इतनी विचलित हो गई, कि फ़तेह सिंह से पराजित हो अपने आवेश की बाँहें फ़ैलाकर फ़तेह सिंह से लिपट गई| फ़तेह सिंह की मांसल भुजाएँ भी सबीना को अपने आलिंगन में भर लिया|
सबीना ने देखा प्रात: आँखें खोल रहा है, किसान अपने खेत पर जाने की तैयारी कर रहा है| वह उठ बैठी, पास ही पड़ा फ़तेह सिंह सो रहा था| उसने धक्का देकर फ़तेह सिंह को जागने के लिए कहा| फ़तेह सिंह ने जागते हुए एक अँगराई ली और उठ खड़ा हो गया, और हँसते हुए चकित नजरों से सबीना की ओर ताकते हुए कहा, ‘कौन कहता है कि सुख केवल अमीरी में है?
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