गैर की जिक्रे-वफ़ा1 पर जलता दिल, वो क्या जाने
वो तो हमारी हर बात पर कहती खुदा जाने
किस-किस का न दिल खूँ हुआ होगा जब उसने
सीने से दुपट्टे को सरकाया होगा, वो क्या जाने
हम तो बेखुद रहे उसकी याद में, वह कब आई
कब मिली, कब चली गई, हम क्या जाने
नींद आई नहीं रात तड़प-तड़प कर बीती
इंतजार में, इनकार होता है क्या, वो क्या जाने
कभी लड़ना, कभी मिलना, कभी दिल तोड़कर चल देना
उस शोख-तबीयत2 को, देवता ना जाना, हम क्या जाने
1. दूसरों की अच्छाई 2.शरारती ढंग
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