Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमने तुम्हारी बेरुखी संग जिंदगी गुजार दी

 


हमने तुम्हारी बेरुखी संग जिंदगी  गुजार  दी

तुम  हमारी  एक  रात  की  बेरुखी  पे खफ़ा हो गये


दर्दे-बयां  उस  अंधेरी  रात  के शबिस्ताँ1 की कैसे करें 

जो  दिल  की  गरज मिटते ही तुम,हमसे जुदा हो गये


तमाम-बज़्ममुश्ताकहो गई, इस अफ़साने को सुनकर 

जो  तुमने  कहा, क्या फ़तीहा4 पढ़ने वाले खुदा हो गये


दर्दे–सर  हमाराता-उम्र, तुम्हारी जुल्फ़ के सौदे में रहा 

मगर तुम्हारा दिल तड़पा,सनम तुम क्या थे,क्या हो गये


जब  तक  तुम हम से मिले न थे, जिंदगी आसान थी

आफ़त  तो  तब  बनी , जब तुम मिलके जुदा हो गये




  1. शयन-गृह 2.पूरी दुनिया 3.उत्सुक 4.प्रार्थना




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