‘हर शाम बैठकी, बिठाई जाती है
हर रोज बेटी, शूली चढ़ाई जाती है|
हर जख्म एक दूजे से अलग हो
इसकी पूरी एहतियात बरती जाती है|
हर बार रश्म के निभाने के पहले
मुँह पर काली पोती जाती है|
फिर घर के कोने में रखे पेट्रोल को
छींटकर आग लगाई जाती है|
बदकिस्मत है बेटी, खर-फूस की तरह
जमाने के हाथों रोज जलाई जाती है|’
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