हो जिसकी मुहब्बत, फ़कत मस्ती-ए किरदार
उसने कैसे कहा, तू नहीं वफादार, तू नहीं मेरा दिलदार
मुजरिम वह खुदा का था, बुतों से था उसको आर
तुमने क्यों माना, उस संगदिल को, अपना गुनहगार
उसके शयन-कक्ष में अंकित, मौत की नक्शागिरी चीख-
चीखकर कह रही, उसका विरह मन था कितना बेजार
लगता तूने अपने जिगर से छोड़कर, फ़िर वही तीर
उसकी तमन्ना के सीने को किया बेदार
उम्र गुजरती जा रही, शब-ए-वस्ल1 के इंतजार में
कैसे माने, तुम नहीं मिलन को पिया बेकरार
1. मिलन की रात
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