Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जग कहता, मैं उसे करूँ याद

 

जग कहता, मैं उसे करूँ याद

जिसे मैं कभी भूली ही नहीं
जो मेरी साँसें बन दिन-रात
रहता मेरे प्राणों के साथ
जग कहता, मैं उसे करूँ याद

उस बिन तेरा जग सूना
खाली नभ का कोना-कोना
कौन सुनेगा, तेरे व्यथित
हृदय का करुण फरियाद
जग कहता, मैं उसे करूँ याद

तीर छोड़ता ध्वनि, मगर यह
कर्ण-भेद संधान किया किसने
कोई नहीं सोचता, न ही तू सोच
कभी तेरे नाम भी पुतेगा इतिहास
जग कहता, मैं उसे करूँ याद

अवनि से अम्बर तक धघक रहा
लहरा रही, दुख-पीड़ा की आग
कर चिग्घाड़, तू मौन को त्याग
अब रहा कहाँ री, तप करने का काल

मत पी अपने अश्रु जल को
अंज़लि में भर-भर के तू
चढ़ती नहीं गगन पर वेदना
जलद की माला, रख तू याद
छोड़ जिद्‌ क्‍यों पालती है तू ऐसी आस
ले पोंछ, न झड़ने दे, अश्रु सायं-प्रभात
जग कहता, सब कुछ भूला, तू उसे कर याद

छोड़ सोचना, विधाता तेरा वाम हुआ
तू जीवन पथ पर चलती चल
देख ऊपर उतरने वाली है रात
पथ है काँटों भरी, कोई नहीं साथ
जग कहता, मैं उसे करूँ याद

यह संसार दिन बन, आया नहीं
कभी किसी को नींद से जगाने
न ही तम नयनों की ताराएँ, पूछी कभी
मुँद रही किरणों से सुबह की बात
तू भावना के निस्सीम गगन पर
प्यास बुझाने का, छोड़ दे आस
जग कहता, मैं उसे करूँ याद

कभी उमड़कर दूगों में मेघ बन
हृदय नभ में कराता बरसात
कभी किलकन का रोदन बन
मेरे जीवन के सूनेपन को
मुखरित कर, करता आबाद
जो चलता परिछाहीं बन, मेरे साथ
जग कहता, मैं उसे करूँ याद

जग को क्‍या बताऊँ, कैसे दिलाऊँ विश्वास
जिसे याद करने कहता; वह हर क्षण
हर पल, बन स्वप्न अगोचर
मेरे प्राणों के दल संग जीता साथ
अंतर ज्वाला में जब जलता तन
अश्रु बन, आँखों से झरता दिन-रात
जिसे कभी भूली ही नहीं, क्या करूँ उसे याद


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