Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जागृति है या कोई सपना

 


जागृति है या कोई सपना



ईश्वर ही जाने , जागृति है या कोई सपना

जिस कुसुमाकार आनन की,मादक छाया में 

बैठने  मेरा  प्राण ,जीवन भर ललकता रहा

वह  आज ,  मेरे  जीवन  अस्ताचल  की

उजड़े वन में, सुमन लदी शाखा सी हिलती

खुद- ब -खुद चलती , मेरे  पास  आ गई


अपने अलकों कॊ डोरी में , मेरे जीवन के

कण-कण को उलझाकर,मुझसे कहने लगी

पोंछ  लो अश्रु भींगे अपने ये दोनों नयन

रोने से वेदना,कभी किसी की न हुई कम


माना कि घमासान अँधियारे के भीतर

अश्रु आशा का है शेष एक दीपक,मगर

इस  अश्रु - जल  से  सिंचित  होकर

भव  धरा  कभी न रह सकी हरी-भरी

व्यर्थ होगा इसे नयन में बसाये रखना






मेरी मानो,कहने को मैं तुमसे दूर-दूर थी

पर सपने में भी,मैं तुमसे भिन्न नहीं थी

वह  तो  हम  दोनों के निज भाग्य की

विकृत ,  वक्र  रेखाओं  का  खेल  था

जो  हम  दोनों , एक  दूजे  का पर्याय 

होकर भी, हम दोनों में न कोई मेल था


आज  समझ  आया ,क्यों  लहरों ने

मेरी  जीवन  नैया को छल से लेकर

उस  सूने  तट  पर  लाया ,  जहाँ

केवल  तृष्णा का मरु था धधक रहा

कहीं नहीं थी तरुओं की सघन छाया


वो   तो  प्रेम  सरिता  की  तीव्र  धार  ने

बहा  ले  आकर , मुझे  सागर से मिलवाया

वरना, बड़ी  तपिश  थी  वहाँ की ज्वाला में

नामुमकिन था,सांध्य सरोरुह का जिंदा रहना

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