Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिंदगी की शाम ढ़लने लगी

 

जिंदगी की शाम ढ़लने लगी

न तुम मिले, न तुम्हारा सहारा मिला


भटक गये गम के अंधेरे में हम

उम्र भर न तुम्हारा इशारा मिला


हम अकेले थे, दिल भी बीमार था

न दवा ही मिली, न तीमार-दारा मिला


मौत ने जब मुस्कुराकर पुकारा मुझे

लगा, जिंदगी को किनारा मिला


मिट गये जमाने के सारे गिले, अब

न शिकवा रहा, न शिकारा मिला


आ गये जिंदगी से बहुत दूर हम

न तुम मिले, न दामन तुम्हारा मिला





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