जीवन- मृत्यु
---- डा० श्रीमती तारा सिंह,नवी मुम्बई
बंधनविहीनपरिवर्तन की इस वसुधा पर
केवल मनुज ही नहीं , इसकेघेरेमें तृण-
तरु, रवि-शशि-तारे, पहाड़, सागर, सभी आते हैं
तभी तो वसुधा रूप बदलकर कभी जलनिधि में
जलनिधि, मरु में ,पहाड़,सागर में नजर आते हैं
निजउद्गमकामुखबंदकर तृषा-तृप्ति
में खौलता प्राण,जीवन संग आखिर कब तक
रहसकताहै, ज्यों पावक में गलकर स्वर्ण
नया रूप को पाता है, त्यों मरण के
रंध्र-रंध्र से लिपटे कुंजित प्रकाश के आलिंगन
को पाकर मनुज नया जनम लेता है
जीवन नश्वर है, और मृत्यु अमर है
जीवनहीकलमृत्युबनेगा
जीवन और मृत्यु के बीच सिर्फ़ भय की
एक पतली तिमिर रेखा है,जो प्राण चेतना
ज्वार सेभरी , जीवन – तरी को
सृजन गुहा के द्वार तक ले जाती है
जिस श्मशान का नाम, हम अपनी
जिह्वा पर लाने तक से डरते हैं
जीवन का स्रोत यहीं से चलता है
यही है वह पुण्यभूमि, जहाँ पहुँचकर
मनुज आध-व्याधि बहु रोग से छूटकर
स्थूल देह परविजय पाता है
झंझा- प्रवाह से निकला यह जीवन
पंच – तत्वों से बना है,जिसमें विकल
परमाणु – पुंज अनल ,क्षितिज और
मृत्तिसंग स्फ़ुर्लिंग है भरा हुआ
जिसका एक दिन क्षय होना निश्चित है
तभीतोनर्तनउन्मुक्त विश्व का स्पंदन
द्रुतगतिसेचलकर,अपने ही पुर्नावर्तन में
लयहोनेचलाजारहा है, मिटता देह है
आत्मा नहीं मिटतीं,मगर मिटने और बनने के
बीचजो क्षण होते हैं,उसे हम मत्यु कहते हैं
जोविनाशों में भी चिर स्थिर ,मंगलमय है
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