कहना छोड़ , कर्म करो
गुप्ता जी के चार बच्चे थे । एक दिन गुप्ता जी ने अपने बच्चों से कहा,’ बाग के सभी पौधे मुरझा रहे हैं । तुमलोग एक –एक बाल्टी पानी रोज स्कूल से लौटने के बाद पौधों में डाला करोगे ।’ बच्चे ठीक अपने हिस्से का पानी पौधों में डाल दिया करते थे । एक बार सबसे छोटा बच्चा , जिसका नाम मुन्नु था, बीमार पड़ गया । अब उसके हिस्से का पानी कौन डालेगा ? आपस में इसी बात पर तीनों बच्चे झगड़ते रहते थे । एक दिन पिताजी ने तीनों को बुलाया, पूछा,’ मुन्नु तो बीमार है, उसके हिस्से का पानी तुमलोग क्यों नहीं डाल आते हो । देखो, कितने पौधे मुरझ गये । उसमें से जो सबसे बड़ा था, पिता ने उससे कहा,’ बेटा ! तुम सबसे बड़ा है और होशियार भी । तुम्हीं क्यों नहीं पानी डाल दिया करते हो ? ’ उसने कहा, ’इसी बात का तो हमें रोना है । आपका और माँ का प्यार, हमेशा छोटा कहकर आपलोग इन लोगों को देते हैं ।और बड़ा कहकर , घर का सभी काम और सब्जी लाने तक का काम मुझसे करवाते हैं । मैं ही अकेला क्यों करूँ ? ये लोग क्यों नहीं करेंगे ?’पिता ने समझाया,’ बेटे ! कौन कितना काम किया, हमें यह नहीं देखना चाहिए; बल्कि जो काम मनुष्य से हो सके, उसे सहर्ष करना चाहिए ।’
तुम हाथ की उँगलियों को ही ले लो । देखो, ये उँगलियाँ दिन दफ़्तर में , सीमेन्ट – गिट्टी मिलाने में अर्थात जीविकोपार्जनका हर काम करती हैं । फ़िर शाम को अपने मालिक के मुँह में रोटी तोड़कर, कितने प्यर से खिलाती हैं । वे भी तो कह सकती हैं कि वे दिन भर काम करती हैम । हमारे चलते ही घर में अनाज के दाने आते हैं, पावँ की उँगलियाँ तो दिन – रात बैठी रहती हैं ।उनसे खाना खिलाने क्यों नहीं कहते, हम थक चुके हैं , अब हमसे नहीं होगा । कहती हैं क्या, ऐसा कभी ? इसीलिए तो हाथ की उँगलियों को लोग लोग चूमते हैं, प्यार करते हैं । और पावँ की उँगलियों को जूते तक ही रखते हैं । उसे कोई चूमते नहीं हैं । बच्चे सुनकर बहुत खुश हुए और बोले, ’अब से यह शिकायत नहीं होगी । हमलोगों से , जिससे जितना सम्भव होगा, एक दूसरे के लिए जीयेंगे और एक दूसरे की सहायता करेंगे ।
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