कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
आसमां से उतारकर बागे जहाँ की सैर पर
मेरे होते खाक-पे नक्शे -पा2 क्यों हो तेरा
मैं कब से बैठा हूँ, पलकें बिछाये जमीं पर
रुतबे में,मैं मेहर-ओ-माह3 से कम नहीं,फ़िर
क्यों रखती तू अपनी आँखें हमसे दरेगकर4
बार-बार अपने वादे का जिक्र करना छोड़ दे
कभी मेरे कसमोंपरभी तू एतवार कर
तेरे जलवे के आलम का क्या कहूँ,आते ही
ख्याल उसका,मेरे कलेजे रह जाते हैं टूटकर
1. जवानी 2. माटी पे कदम का निशां
3. चाँद-सूरज 4. गुस्साकर
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