खुदा तेरे बागे-जहां1 में बहती यह कैसी हवा है
इसमें न तेरी दुआ, न कोई दवा है
तपे-हिज्रा2 की गर्मी में झुलसता है प्राण-पक्षी, कोई
गुल ऐसा नहीं जो अपने पहलू में खार3 नहीं रखा है
इन्सां तेरे एक इशारे पर परवाने की तरह अर्श4 से
जमीं पर उतर आया, क्या यही उसकी खता है
वफ़ा के बदले जफ़ा किया तूने, खाक में मिल
जाने को साहिल कहकर, तुझको मिला क्या है
दिले-जार5 रश्के-मसीहा6 क्यों बना, क्या इन्सानों
की तरह होती तेरी भी मजबूरी, जब कि तू खुदा है
1.दुनिया के बाग़ 2 .ताप के साये 3.काँटा 4.आकाश
5.कष्टदायक 6. मसीहा को लज्जित करनेवाला
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